Imran Khan Bail: पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान को तौशाखाना मामले में मिली जमानत, जानें क्या है ये
Imran Khan Bail: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने बुधवार को राज्य उपहारों की कथित अवैध बिक्री के मामले में जमानत दे दी। हालांकि, उनकी रिहाई अभी भी अनिश्चित बनी हुई है क्योंकि वह कई अन्य मामलों का सामना कर रहे हैं।
जेल में सजा काट रहे इमरान खान
71 वर्षीय पूर्व क्रिकेटर अगस्त 2023 से जेल में बंद हैं और वह अपनी पत्नी बुशरा बीबी के साथ तौशाखाना मामले में 14 साल की सजा काट रहे हैं। इस मामले में उन पर आरोप है कि उन्होंने 2018 से 2022 के बीच प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान 14 करोड़ पाकिस्तानी रुपये (5.01 करोड़ रुपये) से अधिक मूल्य के राज्य उपहार अवैध रूप से हासिल किए और बेचे। हालांकि, इमरान खान और उनकी पत्नी इन आरोपों से इनकार करते हैं।
क्या है तौशाखाना मामला?
तौशाखाना मामले में आरोप है कि खान ने हीरे के गहनों और सात महंगी घड़ियों, जिनमें से छह रोलेक्स थीं, जैसे राज्य उपहारों का दुरुपयोग किया। इनमें सबसे महंगी वस्तु एक घड़ी है, जिसकी कीमत 8.5 करोड़ पाकिस्तानी रुपये (3.05 करोड़ रुपये) बताई गई है।
बुशरा बीबी, जिन्हें जुलाई में गिरफ्तार किया गया था, उनको 24 अक्टूबर को अडियाला जेल से रिहा कर दिया गया। हालांकि, गुरुवार को एक ट्रायल कोर्ट ने तौशाखाना II मामले में इमरान खान और बुशरा बीबी की बरी करने की याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस मामले में आरोप है कि उनकी कार्रवाई से सरकारी खजाने को आर्थिक नुकसान हुआ। कोर्ट ने खान को जमानत मिलने के बाद ट्रायल कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है और चेतावनी दी है कि सहयोग न करने पर उनकी जमानत रद्द की जा सकती है।
इमरान खान का पक्ष
खान के वकील सलमान सफदर ने कहा, "अगर आधिकारिक आदेश आज प्राप्त हो जाता है, तो उनके परिवार और समर्थक उनकी रिहाई के लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क करेंगे।" उन्होंने यह भी दावा किया कि खान को अन्य सभी मामलों में या तो जमानत मिल चुकी है या वह बरी हो चुके हैं।
जेल में रहते हुए इमरान खान का रानीतिक प्रभाव
जेल में रहते हुए भी इमरान खान का राजनीतिक प्रभाव मजबूत बना हुआ है। फरवरी में हुए आम चुनाव में उनकी पार्टी पीटीआई सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, हालांकि उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला। खान के समर्थक न्यायिक कार्यवाही को असहमति को दबाने का साधन मानते हैं, जबकि सरकार का कहना है कि वह न्यायपालिका के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती।
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