"ख्वाजा के दर पर बसंत..." अमीर खुसरो के कलाम, फूलों का गुलदस्ता...अजमेर दरगाह में पेश की गई बसंत, 750 सालों पुरानी परंपरा
Basant in Ajmer Dargah: विश्व में विख्यात अजमेर की सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में बसंत पेश करने की अनूठी परंपरा जो करीब 750 सालों से चली आ रही है, मंगलवार को पारंपरिक तरीके से हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुई. इस मौके पर दरगाह के शाही चौकी के कव्वाल असरार हुसैन के परिवार के लोगों ने परंपरा अनुसार बसंत की पेशकश की जहां यह रस्म दरगाह दीवान की सदारत में अदा की गई.
बसंत का जुलूस निज़ाम गेट से शुरू होकर दरगाह तक पहुंचा जहां शाही कव्वाल अमीर खुसरो के प्रसिद्ध गीत गाते हुए बसंत का गुलदस्ता लेकर दरगाह की ओर चले और गरीब नवाज की मजार शरीफ पर चढ़ाकर परंपरा का निर्वहन किया गया.
#Ajmer: ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में पेश की गई बसंत, शाही कव्वालों ने पेश किए अमीर खुसरो के बसंत पर लिखे कलाम
अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हर साल मनाया जाने वाला पारंपरिक बसंत उत्सव मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ. इस अवसर पर दरगाह के शाही चौकी… pic.twitter.com/DzMh1sKvGn
— Rajasthan First (@Rajasthanfirst_) February 4, 2025
मालूम हो कि यह परंपरा 750 से अधिक सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. इस दौरान शाही कव्वालों की ओर से अमीर खुसरो के बसंत पर लिखे कलाम पेश किए जाते हैं और सरसों के फूलों के साथ मौसमी फूलों से बना गुलदस्ता ख्वाजा की मजार पर पेश किया जाता है.
गंगा-जमुनी तहजीब-आपसी सौहार्द्र का प्रतीक
वहीं इस अवसर पर बड़ी संख्या में जायरीन उपस्थित रहे और उन्होंने बसंत की इस आध्यात्मिक रस्म में भाग लिया. बता दें कि बसंत उत्सव चिश्ती परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे अमीर खुसरो की विरासत से जोड़ा जाता है.
इस अवसर पर दरगाह परिसर में विशेष कव्वाली का आयोजन भी किया जाता है जिसमें सूफी कलाम की गूंज सुनाई देती है. दरगाह के खादिम और जायरीन ने बसंत की इस रस्म को सूफी प्रेम और भक्ति से जोड़ते हुए कहते हैं कि यह आयोजन गंगा-जमुनी तहजीब और आपसी सौहार्द्र का प्रतीक है.
पेश होता है मौसमी फूलों का गुलदस्ता
दरगाह के शाही कव्वाल बताते हैं कि अमीर खुसरो ने अपने पीर निजामुद्दीन औलिया को खुश करने के लिए सरसों और अन्य मौसमी फूलों का एक गुलदस्ता पेश किया था और बसंत पर कलाम लिखकर हजरत निजामुद्दीन औलिया को सुनाए थे. इसके बाद से ही अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बसंत पेश करने की परंपरा शुरू हो गई जो 750 सालों से भी अधिक समय से पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जा रही है.
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