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Karwa Chauth: चौथ माता देती हैं अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद...करवा चौथ पर मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब

Chauth Mata Sawaimadhopur: सवाईमाधोपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर के चौथ का बरवाड़ा में बने चौथ माता मंदिर पर करवा चौथ पर महिला श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। (Chauth Mata Sawaimadhopur) करवा चौथ सुहागिन महिलाओं का सबसे बड़ा त्योहार होता है, इस...
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Chauth Mata Sawaimadhopur: सवाईमाधोपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर के चौथ का बरवाड़ा में बने चौथ माता मंदिर पर करवा चौथ पर महिला श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। (Chauth Mata Sawaimadhopur) करवा चौथ सुहागिन महिलाओं का सबसे बड़ा त्योहार होता है, इस मौके पर महिलाओं ने चौथ माता के मंदिर में पूजा- अर्चना कर चौथ माता से पति की लंबी उम्र की कामना की। इस दौरान मंदिर परिसर में मेले जैसा माहौल नजर आया।

करवा चौथ पर चौथ माता से की पति की लंबी उम्र की कामना

चौथ माता का मंदिर सवाईमाधोपुर के चौथ का बरवाड़ा में ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। मान्यता है कि चौथ माता के दरबार में भक्त जो भी अर्जी लगाता है, देवी मां उसे जरुर पूरा करती हैं। करवा चौथ पर भी महिलाएं चौथ माता की पूजा अर्चना करने पहुंचीं और देवी मां से पति की लंबी आयु के साथ घर में सुख-समृद्धि की कामना की। महिला श्रद्धालुओं ने बताया कि देवी मां के दर से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। मां सबकी मुराद पूरी करती हैं।

मान्यता...तब देवी मां ने की थी महिला के सुहाग की रक्षा

चौथ माता को लेकर एक कथा यह भी प्रचलित है कि एक बार मातेश्री नाम की महिला के पति की युद्ध में मौत हो गई थी। महिला ने चौथ माता के दरबार में गुहार लगाई कि या तो मेरा भी जीवन ले लो या पति का जीवन लौटा दो। कहा जाता है कि महिला की करुण पुकार के बाद चौथ माता ने महिला के पति को जीवित कर दिया था। तब से महिलाएं चौथ माता की पूजा करती आ रही हैं, खासतौर पर करवा चौथ पर चौथ माता मंदिर में महिलाएं जरुर पहुंचती हैं। मंदिर के पुजारी के मुताबिक करवा चौथ पर करीब दो लाख श्रद्धालु मंदिर आते हैं।

चौथ माता मंदिर की स्थापना को लेकर अलग-अलग मत

चौथ माता के मंदिर की स्थापना कब हुई? इसे लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ लोगों का कहना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना 1451 में तत्कालीन शासक भीम सिंह ने की थी। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना जयपुर राजघराने ने की। जब माधो सिंह ने सवाई माधोपुर बसाया था। उसी दौरान यहां मंदिर भी बनवाया गया था। क्योंकि वह माता को कुलदेवी के रुप में पूजते थे। सोलहवीं शताब्दी में यह कस्बा चौहान वंश से राठौड वंश के पास आ गया। राठौड वंश के शासक तेजसिंह राठौड ने 1671 में मुख्य मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक तिबारा बनवाया। हाडोती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य करने से पहले आज भी माता को निमंत्रण देने आते हैं।

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