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Chhath Puja Arghya Muhurat: छठ महापर्व आज से शुरू, ज्योतिषाचार्य से जानें डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय

यह सूर्य षष्ठी व्रत चार दिनों का होता है। इस बार यह आज 5 नवम्बर मंगलवार (चतुर्थी) को नहाय खाय से शुरू हो गया। नहाय खाय के साथ ही छठ पूजा प्रारम्भ हो जाता है।
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Chhath Puja Arghya Muhurat: लोक आस्था का महापर्व छठ आज नहाय खाय से शुरू हो गया है। महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय ने बताया कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह व्रत (Chhath Puja Arghya Muhurat) मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है इस व्रत को करने वाली स्त्रियां धन-धान्य, पति-पुत्र व सुख-समृद्धि से परिपूर्ण व संतुष्ट रहती हैं।

Chhath Puja Arghya Muhuratआज से शुरू हो गया छठ व्रत

यह सूर्य षष्ठी व्रत चार दिनों (Chhath Puja Arghya Muhurat) का होता है। इस बार यह आज 5 नवम्बर मंगलवार (चतुर्थी) को नहाय खाय से शुरू हो गया। नहाय खाय के साथ ही छठ पूजा का प्रारम्भ हो जाता है। इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई करने के पश्चात सात्विक भोजन किया जाता है। छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन से रात में खीर खाकर फिर 36 घण्टे का कठिन निर्जला व्रत रखा जाता है। खरना के दिन सूर्य षष्ठी पूजा के लिए प्रसाद बनाया जाता है। व्रती 7 नवम्बर गुरुवार को सूर्यषष्ठी व्रत रहते हुए सायं काल अस्त होते हुए सूर्य को सूर्यार्घ पूजन के बाद अर्घ्य देती हैं। यह व्रत महिलाएं 36 घण्टे तक करती है। शुक्रवार को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात पारण होता है। इस व्रत को करने से समस्त कष्ट दूर होकर घर में सुख शान्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है।

                                                        ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय

डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय

ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय के अनुसार, सूर्य षष्ठी व्रत गुरुवार 7 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन शाम को अर्घ्य दिया जाता है। सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्य (Chhath Puja Arghya Muhurat) को अर्घ्य देने का समय शाम 05:32 मिनट पर है। वहीं इसके अगले दिन 8 नवंबर शुक्रवार को अर्घ्य देने का समय 06:35 मिनट पर है।

Chhath Puja Arghya Muhuratछठ व्रत कथा

ज्योतिषाचार्य पं राकेश पाण्डेय बताते है कि सूर्य षष्ठी व्रत करने से विशेषकर चर्म रोग व नेत्र रोग से मुक्ति मिल सकती है। इस व्रत को निष्ठा पूर्वक करने से पूजा व अर्घ्य देते समय सूर्य की किरण अवश्य देखना चाहिए। प्राचीन समय में बिन्दुसर तीर्थ में महिपाल नामक एक वणिक रहता था। वह धर्म-कर्म तथा देवताओं का विरोध करता था। एक बार सूर्य नारायण के प्रतिमा के सामने होकर मल-मूत्र का त्याग किया। जिसके फलस्वरूप उसकी दोनों आखें नष्ट हो गई। एक दिन यह वणिक जीवन से उब कर गंगा जी में कूद कर प्राण देने का निश्चय कर चल पड़ा। रास्ते में उसे ऋषि राज नारद जी मिले और पूछे -कहिये सेठ जी कहा जल्दी जल्दी भागे जा रहे हो? अन्धा सेठ रो पड़ा और सांसारिक सुख-दुःख की प्रताड़ना से प्रताड़ित हो प्राण- त्याग करने जा रहा हूँ। मुनि नारद जी बोले- हे अज्ञानी तू प्राण-त्याग कर मत मर भगवान सूर्य के क्रोध से तुम्हें यह दुख भुगतना पड़ रहा है ! तू कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सूर्य षष्ठी का व्रत रख,-तेरा कष्ट समाप्त हो जायेगा। वणिक ने समय आने पर यह व्रत निष्ठा पूर्वक किया जिसके फलस्वरूप उसके समस्त कष्ट मिट गए व सुख-समृद्धि प्राप्त करके पूर्ण दिव्य ज्योति वाला हो गया। अतः इस व्रत व पूजन को करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

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