Narak Chaturdashi: कल है नरक चतुर्दशी, जानें कैसे हुई इस पर्व की शुरुआत
Narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है, दीपावली उत्सव के दौरान विशेष रूप से उत्तर भारत में बहुत महत्व रखती है। इस वर्ष यह त्योहार (Narak Chaturdashi) बुधवार 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा। लक्ष्मी पूजा से ठीक एक दिन पहले मनाया जाने वाला नरक चतुर्दशी दीपावली उत्सव का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण दिन है।
नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) के दिन को छोटी दीवाली, रूप चतुर्दशी तथा रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि इस बार दिवाली दो दिन 31 अक्टूबर और एक नवंबर दो दिन मनाई जा रही है, इसलिए नरक चतुर्दशी की तिथि को लेकर भी भ्रम की स्थिति है। वैसे अधिकतर जगहों पर नरक चतुर्दशी कल बुधवार 30 अक्टूबर को ही मनाई जा रही है।
कैसे हुई इस पर्व की शुरुआत
नरक चतुर्दशी की उत्पत्ति भगवान कृष्ण की कथा में निहित है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर राक्षस नरकासुर को हराया था। युद्ध के बाद, भगवान कृष्ण ने ब्रह्म मुहूर्त के दौरान तेल से स्नान किया, यह समय अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस स्नान को अभ्यंग स्नान कहा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन लाखों लोग अभ्यंग स्नान करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अभ्यंग स्नान करने वाले लोग नरक जाने से बच सकते हैं। अभ्यंग स्नान के समय उबटन के लिये तिल के तेल का उपयोग करना चाहिये।
द्रिक पंचांग के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान, लक्ष्मी पूजा दिवस से एक दिन पूर्व अथवा उसी दिन हो सकता है। जिस समय चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से पूर्व प्रबल होती है तथा अमावस्या तिथि सूर्यास्त के पश्चात प्रबल होती है, तो नरक चतुर्दशी और लक्ष्मी पूजा एक ही दिन पड़ती है। अभ्यंग स्नान हमेशा चन्द्रोदय के समय, किन्तु सूर्योदय से पूर्व चतुर्दशी तिथि के समय किया जाता है।
नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली का महत्व
नरक चतुर्दशी का उत्सव न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि खुद को नकारात्मकता से मुक्त करने की याद भी दिलाता है। माना जाता है कि इस दिन मनाए जाने वाले अनुष्ठान किसी के जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और खुशियों को आमंत्रित करते हैं।
नरक चतुर्दशी में विभिन्न अनुष्ठानों का पालन लोग स्वास्थ्य, धन और खुशी पाने के लिए करते हैं। नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली, खुशी, उत्सव और महत्वपूर्ण परंपराओं से भरा दिन है। भगवान कृष्ण का सम्मान करके और इस दिन के अनुष्ठानों को अपनाकर, भक्त प्रकाश, समृद्धि और सकारात्मकता से भरा जीवन जीने का प्रयास करते हैं, और इसके बाद आने वाले लक्ष्मी पूजा के भव्य उत्सवों के लिए खुद को तैयार करते हैं।
नरक चतुर्दशी को होती है इस देवता की पूजा
नरक चतुर्दशी के दौरान लोग भगवान कृष्ण हैं जिन्होंने अंधकार और बुराई पर विजय प्राप्त की थी। इनके अलावा लोग देवी सत्यभामा (भूदेवी), जो भगवान कृष्ण की पत्नी, थी को शक्ति और भक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा करते हैं।
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