Navratri 2024 Day 3: नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की होती है पूजा, जानें इस दिन के पूजा अनुष्ठान और मंत्र
Navratri 2024 Day 3: नवरात्रि में नौ रातों तक देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान भक्त देवी दुर्गा के नौ रूपों- मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, माँ कुष्मांडा, माँ स्कंदमाता, माँ कात्यायनी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी और माँ सिद्धिदात्री- की पूजा करते हैं। इस वर्ष नवरात्रि 3 अक्टूबर (Navratri 2024 Day 3) से शुरू हो कर 12 अक्टूबर को विजयदशमी के साथ समाप्त होगा।
तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा
नवरात्रि का तीसरा दिन शनिवार 5 अक्टूबर को मनाया जाएगा। तीसरे दिन भक्त मां चंद्रघंटा की पूजा करते हैं, जो शांति, स्थिरता और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती हैं। देवी पार्वती के विवाहित स्वरूप को देवी चन्द्रघण्टा (Navratri 2024 Day 3) के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव से विवाह होने के पश्चात् देवी महागौरी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करना आरम्भ कर दिया, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाने लगा।
उन्हें एक शेरनी पर सवार और दस भुजाओं के साथ दर्शाया गया है। देवी चन्द्रघण्टा अपने चार बायें हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार तथा कमण्डलु धारण करती हैं तथा पांचवां बायां हाथ वर मुद्रा में रखती हैं। वह अपने चार दाहिने हाथों में कमल पुष्प, तीर, धनुष तथा जप माला धारण करती हैं तथा पांचवे दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं।
ऐसा कहा जाता है कि मां चंद्रघंटा अपने शांत स्वरूप में मां पार्वती हैं। कहा जाता है कि उनके माथे पर चांद और घंटी की ध्वनि उनके भक्तों से सभी प्रकार की आत्माओं को दूर भगाती है। किंवदंती है कि उनकी घंटी की ध्वनि ने युद्ध के दौरान कई राक्षसों को परास्त किया है, और उन्हें मृत्यु के देवता के निवास पर भेज दिया है।
मां चंद्रघंटा का प्रिय फूल, मंत्र, प्रार्थना, स्तुति और ध्यान
प्रिय फूल- चमेली
मन्त्र- ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
प्रार्थना- पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
स्तुति- या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
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