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Swaminarayan Temple Khambhat: बहुत महिमा है खंभात के स्वामीनारायण मंदिर की, चढ़ता है गेहूं के लड्डू का भोग

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Swaminarayan Temple Khambhat (Image Credit: Social Media)

Swaminarayan Temple Khambhat: स्वामीनारायण संप्रदाय के अनेक मंदिर देश-विदेश में स्थित है। ये सभी मंदिर बहुत ही दिव्य और भव्य हैं। ऐसा ही एक दिव्य मंदिर खंभात शहर में भी स्थित है। इसे जबरेश्वर हरिकृष्ण स्वामीनारायण मंदिर (Swaminarayan Temple Khambhat) के नाम से जाना जाता है। खंभात शहर के मध्य में राना चकला विस्तार के पास स्थित इस मंदिर में विराजमान हैं श्री जबरेश्वर हरिकृष्ण महाराज। यहां के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यह मंदिर तकरीबन 200 साल से आस्था का प्रचार कर रहा है। इस मंदिर के साथ भक्ति का एक अलग ही इतिहास जुड़ा हुआ है।

Swaminarayan Temple Khambhatजानें कैसा है यह मंदिर

खंभात शहर के मध्य में स्थित इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए एक भव्य द्वार है। इसमें प्रवेश करते ही सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है। यहां मंदिर की दीवारों पर पौराणिक कथाएं और प्रसंगों को चित्रित किया गया है। मंदिर की छत पर विष्णु भगवान के अवतारों को दर्शाया गया है। कृष्णावतारों की लीलाओं को भी छतों पर चित्रित किया गया है। मंदिर के गर्भग्रह में श्री जबरेश्वर हरिकृष्ण महाराज (Swaminarayan Temple Khambhat) के साथ-साथ श्री कृष्ण और राधा जी विराजमान हैं। इनके साथ-साथ श्री घनश्याम महाराज, श्री सुखशैया, श्री वासुदेव, श्री धर्मदेव और श्री भक्ति मैया भी विराजित हैं। कहा जाता है कि मंदिर में स्थापित श्री जबरेश्वर महाराज की मूर्ति स्वंय स्वामीनारायण भगवान ने दी थी।

क्या कहना है मंदिर के कोठारी स्वामी का

मंदिर के कोठारी स्वामी धर्मानंद स्वामी का कहना है ''खंभात के सदाशिव भक्त भगवान के दर्शन करने पधारते थे। भक्तों ने प्रार्थना की, कि खंभात में ही हमें भगवान के दर्शन होने चाहिए। श्री जी महाराज ने अपने पास से एक मूर्ति सदाशिव भगत (Swaminarayan Temple Khambhat) को दी और उन्हें कहा कि इस मूर्ति का प्रतिष्ठान करें। यह आपके जीव का कल्याण करेगी। भक्त अति आनंद के साथ खंभात वापस आए। श्री जी महाराज ने नित्यानंद स्वामी को आज्ञा दी थी कि खंभात में सत्संग करें। नित्यानंद स्वामी सत्संग के लिए खंभात पधारे।''

उन्होंने आगे बताया ''नित्यानंद स्वामी ने बंगले के घाट का मंदिर बनवाया। उसमें आचार्य महाराज श्री रघुवीर जी महाराज के हाथों जबरेश्वर हरिकृष्ण महाराज की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। यज्ञ के दौरान गोपालानंद स्वामी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि यह मूर्ति भले ही स्वरूप में छोटी है, पर जबरी (चालाक) है इसलिए इनका नाम जबरेश्वर हरिकृष्ण महाराज रखिएगा। उस दिन से जबरेश्वर हरिकृष्ण महाराज नाम पड़ा।''

वहीँ यहां आने वाले एक श्रद्धालु परेश ब्रह्मभट्ट का कहना था ''सबसे पहले मूर्ति नीचे के मंदिर के गर्भगृह में थी। बाद में शिखरबद्ध मंदिर बनाकर स्थापना की गई। महाप्रतापी गोपालानंद स्वामी (Swaminarayan Temple Khambhat) ने और महाराज श्री के कर कमलों से इस मूर्ति की यहां प्रतिष्ठा हुई है।''

Swaminarayan Temple Khambhatमंदिर में गेहूं के लड्डू का चढ़ता है भोग

यहां के बुजुर्गों का कहना है कि आस्था के साथ मंदिर का विकास हुआ है। मंदिर में नियमित रूप से भगवान की सेवा (Swaminarayan Temple Khambhat) पूजा होती है। यहां साल के 365 दिन गेहूं के लड्डू का महाराज को भोग लगता है। इसके पीछे भी एक दंतकथा सुनने को मिलती है।

कोठारी स्वामी धर्मानंद स्वामी ने बताया ''यह पूरा क्षेत्र खंभात के भाल का है। जहां ज्यादा कुछ पकता नहीं है। सिर्फ बारिश के पानी से गेहूं होता है। भाल का गेहूं बहुत प्रसिध्द है तो गोपालानंद स्वामी (Swaminarayan Temple Khambhat) ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि इनको गेहूं के लड्डू का भोग चढ़ाइएगा। वह आप से प्रसन्न होकर आपके सारे मनोरथ पूर्ण करेंगे। इसलिए उसी दिन से जबरेश्वर हरिकृष्ण महाराज को 365 दिन गेहूं के लड्डू का भोग अर्पण किया जाता है।''

Swaminarayan Temple Khambhatमंदिर में होता है नियमित सत्संग का आयोजन

आपको बता दें कि मंदिर (Swaminarayan Temple Khambhat) में नियमित रूप से सत्संग सभा का आयोजन होता है। संतों के प्रेरक और आध्यात्मिक प्रवचन से प्रजा को अध्यात्म के मार्ग पर लाने का प्रयास होता है। मंदिर में विभिन्न त्योहारों को भी धूमधाम से मनाया जाता है। भक्तगण मानते हैं कि यहां विराजमान जबरेश्वर हरिकृष्ण महाराज भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करते हैं। मंदिर में पूर्णिमा के दिन दर्शन का भी विशेष महत्त्व है। भक्तों का प्रत्यक्ष अनुभव है कि जो भक्ति में ओत-प्रोत रहते हैं उनका जीवन हमेशा सुखमय रहता है।

श्रद्धालु परेश ब्रह्मभट्ट बताते हैं ''जबरेश्वर महाराज के चरणों में भक्त मनोकामनाएं लेकर आते हैं। वो पूरी होती हैं। महाराज के आशीर्वाद से हर एक भक्त का मनोरथ पूर्ण हुआ है। ये तो महाप्रतापी संकल्पसिद्ध जबरेश्वर महाराज हैं। मैं पिछले 40-50 साल से यहां आ रहा हूं। भक्ति कर रहा हूं।''

मंदिर में यात्रियों के रहने और खाने की भी व्यवस्था की गई है। खंभात शहर के बीच स्थित यह मंदिर (Swaminarayan Temple Khambhat) हरिभक्तों की आस्था का केन्द्र है।

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