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Bangladesh Political Crisis: कौन हैं ‘गरीबों के बैंकर’ मोहम्मद यूनुस, जो अंतरिम सरकार का नेतृत्व

Bangladesh Political Crisis: बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे (Bangladesh Political Crisis) के बाद अंतरिम सरकार की कमान मोहम्मद यूनुस के हाथ में आना लगभग तय है। माना जा रहा है कि इस तख्तापलट की...
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Bangladesh Political Crisis

Bangladesh Political Crisis: बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे (Bangladesh Political Crisis) के बाद अंतरिम सरकार की कमान मोहम्मद यूनुस के हाथ में आना लगभग तय है। माना जा रहा है कि इस तख्तापलट की पटकथा लिखने में 84 वर्षीय यूनुस की भी भूमिका अहम रही थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर इस बारे में जानकारी सामने नहीं आई है। अब दुनियाभर की नजरें यूनुस पर टिकी हैं और जानना चाहती हैं कि कभी अर्थशास्त्री के रूप में पहचाने जाने वाला एक व्यक्ति शेख हसीना जैसी मजबूत सियासी शख्सियत की जगह कैसे लेने जा रहा है ?

कौन है मोहम्मद यूनुस

नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस का जन्म 1940 में दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश के एक बंदरगाह शहर चटगांव में हुआ था। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में वेंडरबिल्ट विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए प्रतिष्ठित फुलब्राइट छात्रवृत्ति प्राप्त की थी। इससे पहले उन्होंने पहले ढाका विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की।

बांग्लादेश के पाकिस्तान से आज़ाद होने के एक साल बाद 1972 में, वे चटगांव विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए लौट आए। लेकिन जल्द ही देश को प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा। 1974 में देश में भयंकर अकाल पड़ा, जिसमें अनुमानित 15 लाख लोग मारे गए। यही वो समय था जिसने यूनुस को झकझोर कर रख दिया।

एक औरत की गरीबी ने बदली जिंदगी

यूनुस को विश्वविद्यालय के पास के एक गांव में एक महिला मिली जिसने एक साहूकार से उधार लिया था। यह राशि एक डॉलर से भी कम थी लेकिन बदले में साहूकार अपने द्वारा तय की गई कीमत पर वह महिला जो कुछ भी पैदा करती उसे खरीद सकता था। 2006 में नोबेल जीतने के व्याख्यान में यूनुस ने कहा, "मेरे अनुसार यह गुलाम मजदूरों की भर्ती करने का तरीका था।" महिला के बाद यूनुस को 42 और लोग मिले जिन्होंने साहूकार से कुल 27 डॉलर उधार लिए थे। इन सभी को यूनुस ने पैसे उधार दिए। इस बारे में उन्होंने बताया, "जब मैंने ऋण दिया तो मुझे जो परिणाम मिले उससे मैं चकित रह गया। गरीबों ने हर बार समय पर ऋण चुकाया।"

यूनुस ने अपने संबोधन में आगे कहा, ”बांग्लादेश में भयंकर अकाल की पृष्ठभूमि में, मुझे विश्वविद्यालय की कक्षा में अर्थशास्त्र के सुंदर सिद्धांत पढ़ाना मुश्किल लगा। अचानक, मुझे भूख और गरीबी के सामने उन सिद्धांतों की निरर्थकता का अहसास हुआ।" उन्होंने कहा, "मैं अपने आस-पास के लोगों की मदद करने के लिए तुरंत कुछ करना चाहता था, भले ही वह सिर्फ़ एक इंसान ही क्यों न हो, ताकि वह एक और दिन थोड़ा और आसानी से गुजार सके।”

ऐसा बना दुनिया की सबसे चर्चित बैंक

यूनुस ने सबसे गरीब निवासियों को अपनी जेब से छोटे-छोटे ऋण देना शुरू किया और 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की, जो ‘माइक्रोलेंडिंग’ यानी छोटे कर्ज देने के माध्यम से गरीबी कम करने में विश्व में अग्रणी बन गया। यह बैंक तेज़ी से बढ़ा, जिसकी विभिन्न शाखाएं और समान मॉडल अब दुनिया भर में काम कर रहे हैं। यूनुस और ग्रामीण बैंक को 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जब उन्होंने आवास, छात्र और सूक्ष्म-उद्यम ऋण और विशेष रूप से बांग्लादेशी महिलाओं के समर्थन में कुल मिलाकर लगभग 6 बिलियन डॉलर का ऋण दिया। यूनुस ढाका स्थित थिंक टैंक ‘यूनुस सेंटर’ के संस्थापक भी हैं, जो नए सामाजिक व्यवसायों को विकसित करने में मदद करता है।

फिर लगे ये आरोप लगे

लेकिन हर कोई यूनुस के तरीकों से खुश नहीं था। आलोचकों के मुताबिक यूनुस और उनके ग्रामीण बैंक ने कर्ज के बदले ऊंची दरों पर वसूले गए ब्याज ने गरीबों को और गरीब बना दिया। हालांकि यूनुस ने उन दावों को खारिज कर करते हुए कहा कि ग्रामीण बैंक का उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है - बल्कि गरीबों की मदद करना और छोटे व्यवसायों को सशक्त बनाना है।

सियासत और यूनुस

"गरीबों के बैंकर" के रूप में जाने जाने वाले यूनुस की जैसे-जैसे सफलता बढ़ती गई, वे सार्वजनिक जीवन से सियासत की तरफ आने लगे। उन्होंने अपना राजनीतिक करिअर शुरू करने के लिए 2007 में अपनी खुद की पार्टी बनाने का प्रयास किया। लेकिन उनकी यह महत्वाकांक्षा हसीना को रास नहीं आई। उन्होंने यूनुस पर "गरीबों का खून चूसने" का आरोप लगाया।

2011 में, हसीना की सरकार ने उन्हें ग्रामीण बैंक के प्रमुख के पद से यह कहते हुए हटा दिया कि 60 वर्ष की कानूनी सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी वे 73 साल की उम्र में भी पद पर बने हुए थे। तब हजारों बांग्लादेशियों ने उनकी बर्खास्तगी का विरोध करने के लिए एक मानव श्रृंखला बनाई थी। इस साल जनवरी में, यूनुस को श्रम कानून के उल्लंघन के लिए छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई। उन्हें और 13 अन्य लोगों को जून में बांग्लादेश की एक अदालत ने उनके द्वारा स्थापित एक दूरसंचार कंपनी के श्रमिक कल्याण कोष से 252.2 मिलियन टका ($ 2 मिलियन) के गबन के आरोप में दोषी ठहराया था।

हालांकि उन्हें किसी भी मामले में जेल नहीं भेजा गया, लेकिन यूनुस पर भ्रष्टाचार और अन्य आरोपों के 100 से अधिक अन्य मामले चल रहे हैं। यूनुस ने इनमें से किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार करते हुए इन आरोपों को बहुत ही तुच्छ और मनगढ़ंत कहानियां बताया। जून में हसीना की आलोचना करते हुए यूनुस ने कहा, "बांग्लादेश में कोई राजनीति नहीं बची है।" "केवल एक पार्टी है जो सक्रिय है और हर चीज़ पर कब्ज़ा करती है, सब कुछ करती है, अपने तरीके से चुनाव जीतती है।”

यूनुस इसके बाद खामोश नहीं बैठे। उनके प्रवक्ता ने हाल ही में स्वीकार किया कि यूनुस ने हसीना के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करने वाले छात्रों के अनुरोध पर सहमति व्यक्त की है कि वे अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार बनेंगे। हसीना के देश छोड़ने के बाद यूनुस ने एक भारतीय चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि पाकिस्तान से 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद बांग्लादेश के लिए "दूसरा मुक्ति दिवस" ​​था।

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