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Chittorgarh Fort: राजपूत रानियों के जौहर का गवाह है यह किला, जानें इसका इतिहास और खासियत

Chittorgarh Fort: राजस्थान में स्थित चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh Fort) भारत के सबसे बड़े और ऐतिहासिक किलों में से एक है। यह किला राजपूतों की बहादुरी और बलिदान का प्रतीक है। यह किला राजपूत रानियों के जौहर का भी प्रतीक है।...
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Image Credit: Social Media

Chittorgarh Fort: राजस्थान में स्थित चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh Fort) भारत के सबसे बड़े और ऐतिहासिक किलों में से एक है। यह किला राजपूतों की बहादुरी और बलिदान का प्रतीक है। यह किला राजपूत रानियों के जौहर का भी प्रतीक है। किले की वास्तुकला, विशाल जल निकाय और विस्तृत नक्काशी इसे एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल बनाती है। यह किला अब एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास

चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh Fort) किसने बनवाया इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह किला महाभारत काल का है वहीं कुछ का कहना है कि यह किला 7वीं शताब्दी में मौर्य शासकों द्वारा बनवाया गया। चित्तोड़ मेवाड़ की राजधानी थी और इसने अलाउद्दीन खिलजी (1303), बहादुर शाह (1535) और अकबर (1567) द्वारा तीन प्रमुख आक्रमण झेला है। किले का इतिहास रानी पद्मिनी और महाराणा प्रताप जैसी शख्सियतों की बहादुरी से चिह्नित है। महलों, मंदिरों और टावरों के साथ 700 एकड़ में फैली यह विशाल संरचना अपने गौरवशाली अतीत के प्रमाण के रूप में खड़ी है।

चित्तौड़गढ़ किले में हुए हैं तीन जौहर

इस किले (Chittorgarh Fort) का इतिहास आपने आप में तीन जौहर को समेटे हुए है। पहला जौहर यहां रानी पद्मिनी ने किया था। उन्होंने अपने 16000 दासियों के साथ यहां जौहर किया था। यह घटना रावल रतनसिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान सन 1303 में हुई थी। वहीं, दूसरा जौहर राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में सन् 1534 ई. में गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण के समय हुआ था जब रानी कर्णवती ने अपनी हज़ारों दासियों के साथ जौहर किया था। तीसरा जौहर राणा उदयसिंह के शासन में हुआ था। अकबर ने इस किले पर 1568 में आक्रमण किया था। उस दौरान फूल कंवर के नेतृत्व में जौहर हुआ था।

चित्तौड़गढ़ किले की खासियत

चित्तौड़गढ़ किले (Chittorgarh Fort) में कई अनूठी विशेषताएं हैं जो इसके ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व को उजागर करते हैं। यहां का विजय स्तंभ मालवा के सुल्तान पर अपनी जीत की याद में 1448 में राणा कुंभा द्वारा बनवाया गया था। यह 37.2 मीटर ऊंचा टॉवर जटिल मूर्तियों और नक्काशी से सुसज्जित है। वहीं कीर्ति स्तम्भ प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित 22 मीटर ऊंचा टॉवर है जो उत्कृष्ट जैन वास्तुकला और नक्काशी का प्रदर्शन करता है। किले में रानी पद्मिनी का महल भी है जो अपनी पौराणिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यह महल कमल के तालाब के बीच स्थित है और रानी पद्मिनी के जौहर की दुखद कहानी को दर्शाता है। यहां का राणा कुंभा महल शासकों के निवास के रूप में कार्य करता था और अपने ऐतिहासिक महत्व और भूमिगत तहखानों के लिए जाना जाता है। यही वो जगह है जहां रानियों ने जौहर किया था। किले के अंदर एक गौमुख जलाशय जिसे एक पवित्र जल कुंड माना जाता है। यह बहुत ही ज्यादा धार्मिक महत्व रखता है।

चित्तौड़गढ़ कैसे पहुंचें

चित्तौड़गढ़ सड़क, रेल और हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर में महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है, जो लगभग 90 किलोमीटर दूर है। यहां के लिए प्रमुख शहरों से नियमित उड़ानें हैं। उदयपुर से, आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या चित्तौड़गढ़ के लिए बस ले सकते हैं। वहीं चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन दिल्ली, मुंबई और जयपुर जैसे शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राज्य-संचालित और निजी सेवाओं सहित कई बसें, चित्तौड़गढ़ को उदयपुर, जयपुर और अजमेर जैसे नजदीकी शहरों से जोड़ती हैं। सुव्यवस्थित राजमार्गों के माध्यम से चित्तौड़गढ़ तक गाड़ी चलाना भी यात्रियों के लिए एक सुविधाजनक विकल्प है।

चित्तौड़गढ़ घूमने का सबसे अच्छा समय

चित्तौड़गढ़ की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का होता है। यह मौसम सुखद और पर्यटन के लिए अनुकूल होता है। इन महीनों के दौरान तापमान 20°C से 30°C के बीच रहता है, जो इसे किले और अन्य आकर्षणों की खोज के लिए आदर्श समय बनाता है। सर्दियों का मौसम आरामदायक जलवायु प्रदान करता है, जिससे पर्यटक गर्मी की भीषण गर्मी के बिना ऐतिहासिक स्थलों का आनंद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त, आप मार्च या अप्रैल में आयोजित मेवाड़ महोत्सव का भी आनंद ले सकते हैं। गर्मी में यहां तापमान बहुत ज्यादा हो जाता है इसलिए इस समय यहां जाना उचित नहीं होगा। जुलाई से सितंबर तक मानसून भी हरियाली के कारण यहां घूमने के लिए एक अच्छा समय हो सकता है।

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