Dengue Alert: भारत में डेंगू का बढ़ता खतरा, अध्ययन में हुआ चिंताजनक खुलासा
Dengue Alert: भारत में डेंगू से होने वाली मौतों में 2030 तक और 2050 तक और अधिक वृद्धि होने की संभावना है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे के जलवायु वैज्ञानिकों, सोफिया याकूब और रॉक्सी मैथ्यू कोल के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन ने जलवायु परिवर्तन और डेंगू के बीच गहरे संबंधों को उजागर किया है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
यह अध्ययन नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म तापमान, मध्यम और समान रूप से वितरित वर्षा, और 60% से 78% के बीच आर्द्रता स्तर, खासतौर पर मानसून (जून–सितंबर) के दौरान, डेंगू के मामलों और मौतों में वृद्धि का कारण बनते हैं। हालांकि, 150 मिमी से अधिक साप्ताहिक भारी बारिश मच्छरों के अंडों और लार्वा को बहाकर डेंगू की संभावना को कम कर देती है।
पुणे को केस स्टडी के रूप में लेते हुए, अध्ययन ने 2004 से 2015 के बीच के डेंगू के आंकड़ों और मौसम संबंधी परिस्थितियों का विश्लेषण किया। वैज्ञानिकों ने तापमान, वर्षा और आर्द्रता के डेंगू पर प्रभाव का पता लगाने के लिए सांख्यिकीय उपकरणों और मशीन लर्निंग का उपयोग किया। अध्ययन में यह भी बताया गया कि 2–5 महीने के अंतराल पर डेंगू का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, जिससे समय रहते रोग नियंत्रण संभव है।
जलवायु परिवर्तन और डेंगू के बढ़ते खतरे
अध्ययन के अनुसार, 2021–2040 की अवधि में पुणे में डेंगू से मृत्यु दर में 13% वृद्धि होने की संभावना है। 2041–2060 के बीच यह वृद्धि 23% से 40% तक हो सकती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि उत्सर्जन स्तर कम है या अधिक। तापमान और मानसूनी वर्षा के स्वरूप में बदलाव इसका मुख्य कारण हैं। हालांकि ये आंकड़े पुणे के लिए हैं, वैज्ञानिकों का मानना है कि देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसा ही प्रभाव देखने को मिलेगा।
स्वास्थ्य प्रणाली पर बढ़ता दबाव
रॉक्सी मैथ्यू कोल ने चेतावनी देते हुए कहा कि, "यदि तुरंत कदम नहीं उठाए गए, तो बढ़ता तापमान और अनियमित मानसून न केवल डेंगू जैसी बीमारियों को बढ़ाएगा, बल्कि हमारी स्वास्थ्य प्रणालियों पर भी भारी दबाव डालेगा।" वैज्ञानिकों का मॉडल दर्शाता है कि भारी बारिश मच्छरों को बहाकर कुछ हद तक राहत दे सकती है, लेकिन भविष्य में गर्म दिनों की कुल संख्या में वृद्धि डेंगू के मामलों को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाएगी।
डेटा साझाकरण की आवश्यकता
अध्ययन में बताया गया कि भारत में डेंगू के मामलों की भारी संख्या में रिपोर्टिंग नहीं होती। एक अध्ययन के अनुसार, रिपोर्ट किए गए मामलों की तुलना में वास्तविक संख्या 282 गुना अधिक हो सकती है। रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा, "हमने पुणे स्वास्थ्य विभाग से डेटा प्राप्त कर इस अध्ययन को अंजाम दिया। लेकिन अन्य राज्यों के स्वास्थ्य विभाग सहयोग नहीं कर रहे हैं। यदि स्वास्थ्य डेटा साझा किया जाए, तो हर जिले और शहर के लिए कस्टमाइज्ड चेतावनी प्रणाली बनाई जा सकती है।"
सहयोग की आवश्यकता
महाराष्ट्र सरकार की मुख्य सचिव, सुजाता सौनिक ने कहा, "यह अध्ययन दर्शाता है कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ मिलकर स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली को बेहतर बना सकते हैं। सरकार, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विभाग के बीच ऐसा सहयोग जीवन बचाने में मदद कर सकता है।"
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस उन्नत चेतावनी प्रणाली से लाभ उठा सकते हैं।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों ने जोर दिया कि मौजूदा डेटा का उपयोग करते हुए स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना चाहिए और डेटा की कमी को दूर करने के लिए रणनीति बनानी चाहिए। रघु मुरतुगुडे, यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के जलवायु वैज्ञानिक और सह-लेखक ने कहा, “हमें यह दिखाना होगा कि वर्तमान डेटा का अधिकतम उपयोग कैसे संभव है, और इसके बाद डेटा की खामियों को भरने के लिए योजनाएं बनानी चाहिए।”
इस अध्ययन के निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि जलवायु परिवर्तन के साथ डेंगू और अन्य जलवायु-संवेदनशील बीमारियों का प्रभाव गंभीर रूप से बढ़ सकता है। प्रभावी चेतावनी प्रणाली और ठोस नीतिगत कदम ही इस चुनौती से निपटने का रास्ता दिखा सकते हैं।
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