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कब रुकेगा पतियों पर अत्याचार? गौरव कुमार भी अतुल, सुभाष, मानव की तरह दर्दनाक अंत तक पहुंचा!

समाज में अक्सर महिलाओं की पीड़ा और उनके संघर्ष की कहानियां सुर्खियां बनती हैं, लेकिन उन मर्दों का दर्द कहां जाता है जो चुपचाप घुटते रहते हैं?
02:46 PM Mar 05, 2025 IST | Rajesh Singhal

Gaurav Kumar Suicide: समाज में अक्सर महिलाओं की पीड़ा और उनके संघर्ष की कहानियां सुर्खियां बनती हैं, लेकिन उन मर्दों का दर्द कहां जाता है जो चुपचाप घुटते रहते हैं? जो अपनी तकलीफ किसी से कह भी नहीं सकते, क्योंकि दुनिया ने मान लिया है कि "मर्द को दर्द नहीं होता।" लेकिन सच यही है कि मर्द भी टूटते हैं, मर्द भी दर्द सहते हैं, और कभी-कभी ये दर्द इतना गहरा हो जाता है कि जीने की चाह ही खत्म हो जाती है।

अतुल सुभाष, मानव शर्मा, राजेंद्र पाल… और न जाने कितने ऐसे अनसुने नाम, जिनकी जिंदगी शादी के बाद किसी बंधन में नहीं बल्कि सजा में बदल गई। जिन हाथों ने प्यार और विश्वास का वचन दिया था, (Gaurav Kumar Suicide)वही हाथ उनकी तकदीर को मिटाने वाले बन गए। कई तो चुपचाप सहते-सहते खत्म हो जाते हैं, और कई अपनी दर्दभरी जिंदगी को खुद खत्म करने का फैसला ले लेते हैं।

अब ऐसा ही एक और दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले से। यहां गौरव कुमार नाम के एक युवक ने अपनी पत्नी के अत्याचारों से हार मानकर मौत को गले लगा लिया। उसकी दुनिया में जो रिश्ता सबसे प्यारा होना चाहिए था, वही उसके लिए सबसे बड़ा जंजाल बन गया। गौरव कुमार की यह दर्दनाक दास्तान सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि उन हजारों पतियों की चीख है जो चुपचाप घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। लेकिन सवाल यह है....आखिर कब तक?

गौरव कुमार... शादी नहीं, दर्द का सौदा मिला

"मां, मैं हार गया..." यह शब्द गौरव कुमार के आखिरी थे। सम्भल के इस युवक ने सपने देखे थे ...एक खूबसूरत जिंदगी के, एक खुशहाल परिवार के। लेकिन शादी के बाद उसे जो मिला, वह सिर्फ मानसिक यातना, अपमान और धमकियां थीं। पत्नी प्रिया मायके चली गई, पैसों की मांग करने लगी और जब गौरव ने इनकार किया, तो दहेज उत्पीड़न के केस की धमकी दी।

एक बेटे को जब अपनी मां से दूर किया जाता है, तो उसकी दुनिया ही उजड़ जाती है। गौरव भी अंदर ही अंदर टूटता गया। आखिरकार, एक दिन उसने जहर खा लिया... और हमेशा के लिए सो गया। पिता कृष्णपाल की आंखों में अब भी बेटे की तस्वीर घूमती है। वे कह रहे हैं, "मैंने उसे हर मुमकिन तरीके से समझाया, लेकिन वह बस एक ही बात कहता था ...पापा, अब मुझसे और नहीं सहा जाता।"

मानव शर्मा.. जिसने प्यार किया, उसी ने तोड़ दिया

आगरा का आईटी प्रोफेशनल मानव शर्मा भी गौरव की तरह अंदर ही अंदर घुट रहा था। पत्नी निकिता पर आंख मूंदकर भरोसा किया, लेकिन उसे धोखा मिला। जब उसे सच का पता चला, तो उसने किसी से कुछ नहीं कहा – सिर्फ एक वीडियो बनाया और फिर आत्महत्या कर ली।

वीडियो में उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन शब्दों में सिर्फ एक शिकायत – "मैंने उसे अपनी दुनिया बना लिया, लेकिन उसके लिए मैं कुछ भी नहीं था।"जब वह इस दुनिया से चला गया, तब जाकर लोगों को अहसास हुआ कि प्यार में मिले धोखे का दर्द सिर्फ एक लड़की ही नहीं, बल्कि एक लड़का भी झेल सकता है।

राजेंद्र पाल... बेवफाई के जहर से टूटा रिश्ता

बरेली के बैंककर्मी राजेंद्र पाल का क्या कसूर था? यही कि उसने अपनी पत्नी से सच्चा प्यार किया? अपनी जिंदगी की हर खुशी उसे देनी चाही? लेकिन जब उसने अपनी पत्नी को किसी और के साथ देखा, तो उसकी दुनिया बिखर गई। कितना दर्द होता है जब वही शख्स, जिसके साथ आपने जिंदगी बिताने के सपने देखे, किसी और के साथ नई दुनिया बसा ले? राजेंद्र को यह सहन नहीं हुआ... और उसने मौत को गले लगा लिया।

अतुल सुभाष.. 90 मिनट का दर्द, जिसे किसी ने नहीं सुना

बेंगलुरु में आत्महत्या करने वाले अतुल सुभाष ने मरने से पहले 90 मिनट का एक वीडियो बनाया था। 90 मिनट... एक इंसान का दर्द, उसकी चीखें, उसकी बेबसी... लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया।

उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा था – "काश! मैं भी बेटी होता, तो शायद मेरी बात सुनी जाती।" यह एक समाज के मुंह पर तमाचा है, जो हमेशा बेटियों की सुरक्षा की बात करता है, लेकिन बेटों के दर्द पर कभी ध्यान नहीं देता।

आखिर कब सुनी जाएगी इन मर्दों की चीख?

समाज में जब एक महिला पर अत्याचार होता है, तो पूरा देश उसके लिए आवाज उठाता है। लेकिन जब एक पुरुष शादी के बाद प्रताड़ित होता है, तो उसकी पीड़ा को कोई नहीं सुनता।

गौरव, मानव, राजेंद्र, अतुल… ये सिर्फ कुछ नाम हैं, लेकिन ऐसे कितने ही मामले रोज सामने आते हैं, जिन्हें न तो कोई सुनता है और न ही कोई देखता है। क्या पुरुषों की पीड़ा का कोई मोल नहीं? क्या उनकी आत्महत्याओं को भी उतनी ही गंभीरता से लिया जाएगा, जितनी महिलाओं के मामलों को लिया जाता है? सवाल बहुत हैं, लेकिन जवाब शायद ही कोई देने को तैयार हो।

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