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Mahakumbh 2025: महिलाएं कैसे बनती हैं नागा साधु? दीक्षा से सन्यासी जीवन तक बेहद कठिन होते हैं नियम!

महाकुम्भ के लिए साधु-संत प्रयागराज पहुंच रहे हैं। क्या आप जानते हैं महिलाओं के संन्यासी बनने की कितनी कठिन प्रक्रिया है।
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Mahakumbh 2025: महाकुम्भ के लिए देशभर से साधु-संत प्रयागराज पहुंच रहे हैं। इनमें महिला साधु-सन्यासी भी हैं, (Mahakumbh 2025) मगर क्या आप जानते हैं कि महिलाओं के साधु बनने की क्या प्रक्रिया होती है? दीक्षा के पहले दिन से लेकर सन्यासी जीवन तक इनको किन बेहद कठिन नियमों का पालन करना पड़ता है? तब जाकर महिलाओं को पूर्ण दीक्षा मिल पाती है।

माता-पिता ने दान की बेटी...अब संन्यासी

प्रयागराज की धरती पर महाकुम्भ में देशभर से साधु-संत पहुंच रहे हैं, काफी महिला साधु भी कुम्भ मेले के लिए प्रयागराज पहुंचीं हैं। इनमें एक महिला साधु की उम्र महज 13 साल है। खास बात ये है कि इस बेटी को माता-पिता ने ही साधु बनने के लिए दान किया था, जिसके बाद वह कठिन प्रक्रिया से गुजरते हुए दीक्षा लेकर अब सन्यासी बन गई हैं और अब प्रयागराज की धरती पर महाकुम्भ में शामिल हो रही हैं।

महिलाओं के साधु बनने की क्या प्रक्रिया?

साधु बनना किसी के लिए भी आसान नहीं होता, चाहे वह पुरुष हों या फिर महिला। साधु बनाने से पहले उन्हें कई कठिन तप और परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। महिलाओं के सन्यासी बनने की प्रक्रिया की बात करें तो सबसे पहले गुरु उनसे सवाल जवाब करते हैं, जिससे यह पता लगाया जा सके कि यह साधु बनने योग्य हैं और इस पथ पर संयम के साथ आगे बढ़ सकती हैं। इसके बाद उन्हें संन्यासी बनने की कठिन प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी जाती है और फिर सोच-विचार करने के लिए कुछ वक्त दिया जाता है।

दीक्षा से शुरु होता है सन्यासी जीवन

साधु बनने की शुरुआत दीक्षा से होती है। इसे पंच दीक्षा कहा जाता है, जिसमें पांच गुरु अपने शिष्य को चोटी, गेरुआ वस्त्र, रुद्राभ, भभूत और जनेऊ देते हैं। इन सभी के पालन के लिए नियम बताए जाते हैं। यह दीक्षा तब दी जाती है, जब गुरु शिष्य को इन पंच दीक्षा के नियम पालन के योग्य समझते हैं। इसके बाद शिष्य को मंत्र ज्ञान दिया जाता है। वहीं सन्यासी के रहन-सहन, खान-पान के नियम बताए जाते हैं।

काम-क्रोध पर नियंत्रण जरुरी

किसी भी सन्यासी को पूर्ण दीक्षा तभी मिल पाती है, जब वह काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रुपी पांच विकारों पर अपना नियंत्रण कर लेते हैं। इन विकारों पर नियंत्रण के बाद शिष्य को पूर्ण दीक्षा दी जाती है। उन्हें यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। इसके बाद वह गुरु के बताए नियमों के अनुसार धर्म का पालन करते हुए सत्य के साथ संन्यासी जीवन का निर्वाह करती हैं। हालांकि महिलाओं के लिए सन्यास के बाद परिवार से दूर रहने की बाध्यता नहीं होती।

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