One Nation One Election Explainer: 'एक देश, एक चुनाव' को मंजूरी मिली... इन 11 सवालों से समझिए पूरा गणित
One Nation One Election Explainer: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश भर में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को इस संबंध में घोषणा कर दी है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट को महीनों के विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से मंजूरी दी गई। यह निर्णय पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' (One Nation One Election Explainer) योजना पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद आया है।
बुधवार को कैबिनेट के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के कार्यान्वयन के लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार किया गया है। पैनल ने पहले चरण के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव (One Nation One Election Explainer) कराने की सिफारिश की थी, जिसके बाद 100 दिनों की अवधि के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने थे। 2014 में भाजपा को बहुमत मिलने के बाद से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन करते रहे हैं।
यहां हम इन ग्यारह सवालों के जरिए आपको 'एक देश एक चुनाव' से जुड़ी हर वो जानकारी दे रहे हैं, जिसके जवाब आप जानना चाहते हैं।
क्या है एक राष्ट्र-एक चुनाव (ONOE)
ONOE अवधारणा का सुझाव है कि सभी राज्यों के चुनाव लोकसभा के आम चुनावों के साथ-साथ आयोजित किए जाएं, जो हर पाँच साल में होते हैं। इसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है और चुनावों की आवृत्ति को कम करते हुए समय और संसाधनों को बचाया जा सकता है।
कब आया पहला प्रस्ताव
यह धारणा 1983 से अस्तित्व में है, जिसे शुरू में चुनाव आयोग ने प्रस्तावित किया था। हालांकि भारत में 1967 तक एक साथ चुनाव (One Nation One Election Explainer) कराने का चलन था। लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव 1951-52 में एक साथ हुआ था, यह प्रथा 1957, 1962 और 1967 के चुनावों तक जारी रही। हालांकि, कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में व्यवधान शुरू हो गए, और 1970 में लोकसभा को भी समय से पहले भंग कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप केवल तीन लोकसभा कार्यकाल पूरे हो पाए।
हालिया प्रस्ताव की कहानी
अगस्त, 2018 में विधि आयोग ने इस संबंध में ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी की। इसमें पंचायत से लेकर लोकसभा तक, सभी चुनाव एक साथ कराए जाने से जुड़ी विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली गई। आयोग के मुताबिक इस फैसले को संविधान से लेकर कई कानूनों में बड़े बदलावों के बाद ही लागू किया जा सकेगा। सितंबर, 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने इस साल मार्च में 18 हजार पृष्ठ में रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी, जिसमें एक देश-एक चुनाव की पैरवी की गई।
क्यों आवश्यक है?
रिपोर्ट्स बताती हैं कि लोकसभा और विधानसभाओं की चुनाव प्रक्रिया में निर्वाचन आयोग को 4,500 करोड़ रुपए से अधिक का आर्थिक भार का सामना करना पड़ता है। भाजपा का कहना है कि देश में एक साथ चुनाव (One Nation One Election Explainer) करवाने से इस खर्च में बचत की जा सकती है।
एक राष्ट्र-एक चुनाव के लाभ
बार-बार होने वाले चुनावों से शासन से ध्यान हटकर प्रचार पर चला जाता है, जिससे प्रशासनिक पक्षाघात पैदा होता है जो भारत के विकास और प्रभावी शासन को बाधित कर सकता है।
लागत बचत और चुनावी बुनियादी ढांचा
1951-52 के लोकसभा चुनावों में 53 दल और लगभग 1,874 उम्मीदवार शामिल थे, जिसकी लागत लगभग ₹11 करोड़ थी। इसके विपरीत, 2019 के चुनावों में 610 पार्टियाँ और लगभग 9,000 उम्मीदवार थे, जिसके कारण अनुमानित ₹60,000 करोड़ का खर्च हुआ। जबकि बुनियादी ढांचे में शुरुआती निवेश की आवश्यकता है, सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग करने से महत्वपूर्ण दीर्घकालिक बचत हो सकती है।
आदर्श आचार संहिता का प्रभाव
चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों को बाधित करती है, जिससे चुनाव संबंधी जिम्मेदारियों के कारण चल रही परियोजनाओं में देरी होती है।
कानून प्रवर्तन संसाधनों का अनुकूलन
चुनावों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की व्यापक तैनाती की आवश्यकता होती है, जो उन्हें महत्वपूर्ण कार्यों से विचलित कर सकती है। एक साथ चुनाव इन मांगों को कम कर सकते हैं, जिससे संसाधनों का उपयोग अनुकूलित हो सकता है।
कब से लागू होगा?
इस संबंध में आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी सामने नहीं आई है। लेकिन सूत्रों की मानें तो विधि आयोग 2029 से पंचायत से लेकर लोकसभा तक, सभी चुनावों को एक साथ करवाने की सिफारिश कर सकता है।
कौनसे दल पक्ष में, कौन नहीं?
एक देश, एक चुनाव (One Nation One Election Explainer) को लेकर सभी दल एकराय नहीं हो सके हैं। विपक्ष ही नहीं, एनडीए के घटक दल भी इससे पूरी तरह सहमत नहीं है। जदयू ने इस कदम का समर्थन किया है, लेकिन तेलुगू देशम पार्टी का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। जानकारी के अनुसार कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क साधा था। इनमें से 47 राजनीतिक दलों ने जवाब दिया। जबकि 15 दलों ने इसे लेकर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी। अभी तक 32 दलों ने इस विचार का समर्थन किया है, जबकि 15 दलों ने विरोध किया।
अन्य देशों में एक राष्ट्र-एक चुनाव
दक्षिण अफ्रीका में, राष्ट्रीय और प्रांतीय दोनों चुनाव हर पांच साल में होते हैं, नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं। स्वीडन में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव, स्थानीय निकाय चुनाव के साथ-साथ, हर चार साल में सितंबर में एक निर्धारित तिथि पर होते हैं। यूके में, 2011 के निश्चित-अवधि संसद अधिनियम ने संसदीय चुनावों के लिए एक नियमित कार्यक्रम पेश किया, जिससे पूर्वानुमानित चुनाव चक्रों के लिए एक रूपरेखा स्थापित हुई।
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