Shashi Tharoor vs Congress: कांग्रेस में बढ़ता तनाव: थरूर की महत्वाकांक्षा से 2026 चुनाव पर असर?
Shashi Tharoor vs Congress: केरल में कांग्रेस की आंतरिक शांति को शशि थरूर की नेतृत्व दावेदारी ने हिला कर रख दिया है। कांग्रेस की पहले से ही कमजोर स्थिति के बीच यह विवाद पार्टी के लिए 2026 के विधानसभा चुनावों में लेफ्ट फ्रंट के खिलाफ चुनौती को और जटिल बना सकता है। थरूर का दावा है कि वे गैर-कांग्रेसी मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन उनकी इस महत्वाकांक्षा ने पार्टी के अंदर असमंजस पैदा कर दिया है।
2021 के विधानसभा चुनावों में जब वाम मोर्चे ने परंपरागत "रिवॉल्विंग डोर" राजनीति को तोड़ते हुए सत्ता में वापसी की, तो कांग्रेस ने अपने संगठन में बड़े बदलाव किए। पार्टी ने गुटबाजी को खत्म करने के लिए ऐसे नेताओं को आगे लाने की कोशिश की, जिनकी किसी भी गुट से सीधी संबद्धता नहीं थी। लेकिन चार साल बाद, शशि थरूर की नेतृत्व दावेदारी से कांग्रेस के भीतर का संतुलन एक बार फिर बिगड़ता नजर आ रहा है।
थरूर का अलग अंदाज कांग्रेस के लिए चुनौती
शशि थरूर अपनी बेबाकी और अलग अंदाज के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में उन्होंने केरल में वाम मोर्चे द्वारा स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की सराहना की थी, जिससे कांग्रेस में असहजता बढ़ गई थी। इसी तरह, मंगलवार को उन्होंने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन के व्यापार मंत्री के साथ एक तस्वीर साझा कर मुक्त व्यापार समझौते (FTA) वार्ता की सराहना की, जिससे सोशल मीडिया पर हलचल मच गई।
कांग्रेस पहले ही उनके वाम सरकार की प्रशंसा करने पर असंतोष जता चुकी है, लेकिन अब थरूर की कांग्रेस की ताकत पर सवाल उठाने वाली टिप्पणियों ने पार्टी के अंदर छिपी चिंताओं को उजागर कर दिया है। कांग्रेस के कई सदस्य निजी तौर पर मानते हैं कि पार्टी इस बार एलडीएफ को सत्ता से हटा पाएगी या नहीं, यह अभी भी अनिश्चित है।
चुनावी गणित और कांग्रेस की मुश्किलें
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती मतों का विभाजन है। भाजपा लगातार ईसाई समुदाय को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रही है, जबकि हिंदू मतों में भी कांग्रेस के लिए अनिश्चितता बनी हुई है। इससे कांग्रेस की मुस्लिम सहयोगी पार्टी IUML पर निर्भरता और बढ़ गई है। वहीं, वाम मोर्चा भी कांग्रेस के मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश में जुटा है। इस सबके बीच, कांग्रेस केवल वाम मोर्चे के खिलाफ दो कार्यकालों की सत्ता विरोधी लहर पर भरोसा कर रही है।
थरूर ने पार्टी के अंदर एक व्यापक चिंता को खुलकर सामने रखा है। उन्होंने खुद को इस समस्या का समाधान बताया है और कहा है कि वे गैर-कांग्रेसी मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में ला सकते हैं, जिससे पार्टी के समर्थन का दायरा बढ़ेगा।
अलग-थलग संगठन में थरूर की बढ़ती लोकप्रियता
लगातार चार बार तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से जीत हासिल करने वाले शशि थरूर निश्चित रूप से केरल में एक लोकप्रिय नेता हैं। हालांकि, कांग्रेस के राज्य संगठन में वे अकेले पड़ते दिख रहे हैं और कई वरिष्ठ नेता उन्हें बाहरी मानते हैं।
उन्होंने अब केरल कांग्रेस की कमान संभालने की इच्छा जताई है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनके इस दावे को अन्य नेताओं की तुलना में प्राथमिकता देना आसान नहीं होगा। कई लोगों का मानना है कि थरूर एक ऊंचे लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं और संभवतः वे केरल की राजनीति में अपनी भूमिका बढ़ाना चाहते हैं, भले ही वे मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने का दावा न कर रहे हों।
कांग्रेस की मौजूदा नाजुक स्थिति को देखते हुए पार्टी के लिए थरूर को पूरी तरह नजरअंदाज करना मुश्किल होगा। ऐसे में देखना होगा कि कांग्रेस नेतृत्व उन्हें पार्टी के भीतर कितनी अहम भूमिका देता है और इससे आगामी विधानसभा चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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