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Rajasthan: भाजपा का चक्रव्यूह! हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल हार की वजह जानें!"

Rajasthan By-Election Result 2024: राजस्थान की राजनीति में इस बार के चुनावों ने कई पुरानी धारणाओं को तोड़ते हुए नई तस्वीर पेश की है। कहीं जीत के दावे धराशायी हुए (Rajasthan By-Election Result 2024)तो कहीं मजबूत समझी जाने वाली रणनीतियां...
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Rajasthan By-Election Result 2024: राजस्थान की राजनीति में इस बार के चुनावों ने कई पुरानी धारणाओं को तोड़ते हुए नई तस्वीर पेश की है। कहीं जीत के दावे धराशायी हुए (Rajasthan By-Election Result 2024)तो कहीं मजबूत समझी जाने वाली रणनीतियां बिखर गईं। त्रिकोणीय माने जाने वाले इस राजनीतिक संग्राम में मुकाबला मुख्यतः भाजपा और रालोपा के बीच सिमट गया, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली मानी जाने वाली कांग्रेस हाशिए पर दिखाई दी। भाजपा की सधी हुई रणनीति ने रालोपा के सपनों को धरातल पर ला दिया।

हनुमान बेनीवाल के राजनीतिक किले पर इस बार भाजपा ने सेंध लगा दी। उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल को भाजपा उम्मीदवार रेवंतराम डांगा ने हराकर यह सीट जीत ली। दिलचस्प बात यह है कि डांगा कभी हनुमान बेनीवाल के करीबी माने जाते थे। सोलह साल से बेनीवाल परिवार का मजबूत किला मानी जाने वाली यह सीट अब भाजपा के खाते में चली गई, जिससे राज्य की राजनीति का नया समीकरण बनता दिख रहा है।

रालोपा की हार: आत्ममंथन की आवश्यकता

इस चुनाव में रालोपा की हार ने पार्टी के लिए कई सवाल खड़े कर दिए हैं। खींवसर, जो हनुमान बेनीवाल के प्रभाव क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था, इस बार भाजपा के चक्रव्यूह में उलझ गया। लंबे समय तक क्षेत्र की जनता से सीधे जुड़े रहने वाले हनुमान बेनीवाल की राजनीतिक रणनीतियां इस बार अप्रभावी रहीं। उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल की हार न केवल व्यक्तिगत झटका है, बल्कि पार्टी के लिए भी बड़ा झटका है। पिछले विधानसभा चुनाव में तीन विधायक वाली रालोपा अब शून्य पर सिमट गई है। यह स्थिति आत्ममंथन और सुधार के लिए स्पष्ट संकेत है।

भाजपा की सधी रणनीति और जीत का मंत्र

भाजपा की इस बार की चुनावी रणनीति बेहद मजबूत और सटीक रही। पार्टी ने उन कमजोर कड़ियों को पहले ही भांप लिया, जो रालोपा को मदद पहुंचा सकती थीं। रालोपा के मददगार रहे दुर्गसिंह को भाजपा में शामिल कर लिया गया, जिससे बेनीवाल का पारंपरिक समर्थन कमजोर हो गया। अभिनव राजस्थान पार्टी के अशोक चौधरी का भाजपा प्रत्याशी को समर्थन भी समीकरण बदलने में महत्वपूर्ण रहा। भाजपा की घेराबंदी में चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह की भूमिका भी चर्चा में रही। इस बार उन्होंने हनुमान बेनीवाल का साथ देने के बजाय खुलकर भाजपा उम्मीदवार रेवंतराम डांगा के लिए प्रचार किया। उनकी सक्रियता ने राजपूत समेत अन्य समुदायों के वोट भाजपा के पक्ष में खींचे।

आरएसएस और भाजपा का ग्राउंड गेम

भाजपा की जीत में आरएसएस के पदाधिकारियों की भूमिका भी अहम रही। घर-घर जाकर वोट मांगने की रणनीति और मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिशें सफल रहीं। यह जमीनी स्तर पर संगठन की ताकत का प्रमाण है।

कांग्रेस का सीमित प्रभाव और भाजपा के भरोसे का लाभ

चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा। पार्टी ने खींवसर में प्रभाव जमाने की कोशिश की, लेकिन भाजपा और रालोपा के बीच सीधा मुकाबला होने से कांग्रेस पूरी तरह हाशिए पर चली गई। भाजपा ने राज्य और केंद्र में अपनी सरकारों के प्रभाव और समर्थकों के भरोसे को भुनाया।

भाजपा की अप्रत्याशित जीत और रालोपा के लिए सबक

भाजपा की जीत उतनी ही हैरान करने वाली है जितनी रालोपा की हार। खींवसर, जिसे हनुमान बेनीवाल का गढ़ माना जाता था, भाजपा ने अपने मजबूत संगठन, सधी रणनीति, और प्रभावशाली नेताओं के प्रयासों से जीत लिया। यह नतीजे न केवल रालोपा बल्कि पूरे राज्य की राजनीति के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत हैं। अब यह देखना होगा कि भाजपा अपने वादों पर कितना खरा उतरती है और रालोपा अपनी हार से क्या सबक लेती है।

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