Dotasara Vs Pilot : कांग्रेस में डोटासरा बनाम पायलट : प्रदेश कांग्रेस के कार्यक्रमों से अब भी दूर पायलट
Dotasara vs Pilot In Congress : जयपुर। राजस्थान में पिछले 5 साल गहलोत बनाम पायलट देखने के बाद भी कांग्रेस में कुछ बदला नहीं है। विधानसभा चुनाव के दौरान पायलट को अलग-थलग कर कांग्रेस ने सत्ता गंवाई, लेकिन वह फासला अब भी कायम है। गहलोत राज में सत्ता और संगठन से बनी पायलट की दूरी अब भी खत्म नहीं हुई है। लोकसभा चुनाव में पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी में कांग्रेस की सफलता ने प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को पायलट के सामने खड़ा कर दिया है।
प्रदेश कांग्रेस के कार्यक्रमों से पायलट की दूरी
अशोक गहलोत के शासनकाल में सचिन पायलट अक्सर सरकार और संगठन के कार्यक्रमों से अलग ही नजर आते रहे। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी गहलोत, गोविंद डोटासरा और प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा एक मंच से प्रचार करते रहे, लेकिन पायलट उनमें शामिल नहीं होते थे। अब जब कांग्रेस राजस्थान में सत्ता से बाहर हो चुकी है और अशोक गहलोत ने भी कांग्रेस के कार्यक्रमों से दूरी बना रखी है, उसके बावजूद पायलट प्रदेश संगठन के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो रहे हैं।(Dotasara vs Pilot In Congress)
जयपुर-कोटा में प्रदर्शन में नहीं आए पायलट
NEET परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर हाल ही कांग्रेस ने देशभर में प्रदर्शन किया। जयपुर में भी प्रदेश स्तर का प्रदर्शन किया गया, जिसमें PCC चीफ गोविंद डोटासरा सहित कई विधायक, पूर्व मंत्री शामिल हुए, लेकिन पायलट इस प्रदर्शन में नजर नहीं आए। बाद में भरपाई के लिए पायलट ने इस मामले में प्रेस कान्फ्रेंस कर बयान जारी किया। इससे पहले प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस ने कोटा में बड़ा प्रदर्शन किया, लेकिन पायलट वहां भी नहीं पहुंचे। पायलट के शामिल नहीं होने के चलते उनके समर्थक भी कार्यक्रमों से पूरी तरह नहीं जुड़ रहे हैं।
लोकसभा में जीत से बढ़ा पायलट-डोटासरा का कद
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी से 25 में से 11 सीटें छीनने में सफल रही। इनमें से 8 सीटों पर कांग्रेस ने और 3 पर उसके सहयोगियों ने जीत हासिल की। कांग्रेस जिन सीटों पर जीती उनमें दौसा, टोंक-सवाई माधोपुर, करौली-धौलपुर और भरतपुर की सीट शामिल हैं, जहां पायलट का अच्छा खासा प्रभाव है। गुर्जर-मीणा बहुल इन इलाकों में जीत का श्रेय पायलट को जाता है। झुंझुनूं से चुने गए सांसद बृजेंद्र ओला भी पायलट समर्थक हैं।
पूर्वी राजस्थान के अलावा कांग्रेस को शेखावाटी क्षेत्र में सीकर, चूरू, झंझुनूं सीट पर सफलता मिली है। डोटासरा इसी इलाके से आते हैं। माना जाता है कि डोटासरा ने भाजपा में राजेंद्र राठौड़- राहुल कस्वां की लड़ाई का फायदा उठाकर इलाके के जाटों को भाजपा के खिलाफ एकजुट कर दिया।(Dotasara vs Pilot In Congress)
पायलट की जगह आए थे डोटासरा
PCC चीफ डोटासरा को अशोक गहलोत का वरदहस्त हासिल है। जुलाई 2020 में गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत पर पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाया गया तो गहलोत ने ही डोटासरा को आगे किया था। गहलोत के आशीर्वाद से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने डोटासरा विधानसभा चुनाव तक गहलोत के पीछे ही खड़े रहे। यहां तक की विधानसभा चुनाव की रणनीति और टिकटों का वितरण भी गहलोत के अनुसार ही हुआ। विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भरे मंच से यह बात कही थी कि यदि उनकी और डोटासरा की चलती तो चुनाव में कांग्रेस का यह हाल नहीं होता। अब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद डोटासरा अपना स्वतंत्र वजूद बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए गहलोत की छाया से बाहर निकलते ही उनके सामने पायलट खड़े हैं। जिनके साथ उनके संबंध अभी सहज नहीं है।
क्या पायलट को कमान सौंपेगा आलाकमान ?
राजस्थान में 2013 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और मात्र 21 सीटों पर सिमटकर रह गई, तब पार्टी आलाकमान ने सचिन पायलट को कांग्रेस की कमान सौंपी थी। तब से यही माना जा रहा था कि आने वाला समय पायलट का ही होगा, लेकिन 2018 में कांग्रेस सत्ता में लौटी तो गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने में सफल रहे। हालांकि तब भी पायलट का रसूख कम नहीं हुआ। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ-साथ उप मुख्यमंत्री भी बने और अपने कई समर्थकों को मंत्री बनवाने में भी सफल रहे।
राजस्थान में 2018 से 2023 के बीच कई मौके ऐसे आए, जब लगा कि आलाकमान राजस्थान की कमान पायलट के हाथ में सौंप सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 2023 तक यह माना जा रहा था कि गहलोत के बाद पायलट ही नेता होंगे। खुद राहुल गांधी ने कई बार कहा कि गहलोत कांग्रेस का वर्तमान हैं तो पायलट भविष्य हैं। अब राजस्थान में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है, लेकिन लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन से एक बार फिर पार्टी की उम्मीदें बढ़ी हैं। इसी से उत्साहित पायलट के कई समर्थक अब खुलकर कहने लगे हैं कि राजस्थान में कमान उन्हें सौंप दी जानी चाहिए।
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