क्या होगा किसानों का? भजनलाल सरकार का फैसला... बाजरा MSP पर खरीदारी नहीं होगी..क्यों?
Rajasthan Bajra MSP: राजस्थान के किसानों के लिए एक और निराशाजनक खबर आई है, जब उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। किसान इस साल भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बाजरा खरीदी की उम्मीद लगाए हुए थे, लेकिन सरकार ने इसे खारिज कर दिया है। हाल ही में हुए विधानसभा सत्र में विधायक रितु बनावत और हरलाल सारण ने बाजरे की MSP पर खरीदारी को लेकर सवाल उठाए थे। अब सरकार की ओर से भेजे गए जवाब में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि (Rajasthan Bajra MSP)इस साल बाजरे की MSP पर खरीदारी नहीं की जाएगी। यह फैसला किसानों के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, जो पहले से ही कठिन समय से गुजर रहे हैं।
किसानों के हक में बयानबाजी
राजस्थान में बीजेपी नेता डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने पहले कांग्रेस सरकार के खिलाफ बाजरे की खरीद MSP पर करने की मांग की थी, लेकिन अब जब सत्ता बीजेपी के पास है, तो वही सवाल फिर से सामने आया है। पूर्ववर्ती सरकार पर आरोप लगाने वाली बीजेपी सरकार खुद किसानों को MSP पर बाजरा खरीदने का कोई समाधान नहीं दे पाई है। यह न केवल बीजेपी की राजनीतिक बयानबाजी को सवालों के घेरे में डालता है, बल्कि किसानों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर भी गंभीर सवाल उठाता है।
अब बीजेपी की सरकार के दावे पर ग्रहण
कांग्रेस के शासन के दौरान राज्य सरकार ने यह कारण बताया था कि बाजरे की खरीद सार्वजनिक वितरण प्रणाली में उपयोगिता नहीं होने और बिना सप्लाई के स्टॉक बढ़ने से वित्तीय संकट हो सकता है। अब वही कारण बीजेपी सरकार भी अपना रही है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या बीजेपी की सरकार ने सत्ता में आते ही वही नीतियां अपनाई हैं जिनकी आलोचना कांग्रेस के शासनकाल में की जाती थी?
किसानों का मुद्दा बनाम सत्ता के स्वार्थ
किसान कल्याण समिति द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका के बाद जब सरकार ने बाजरे की खरीद MSP पर न करने का फैसला लिया, तो यह न केवल किसानों के लिए एक बड़ा झटका था, बल्कि विपक्षी दलों के लिए भी यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। राज्य सरकार के इस फैसले ने यह दिखा दिया कि राजनीतिक स्वार्थ किसानों की समस्याओं को सुलझाने से ज्यादा अहम हैं। इस फैसले ने साफ कर दिया है कि किसानों की आवाज सत्ता के गलियारों तक नहीं पहुंच पा रही है।
एक राजनीतिक खेल?
केंद्र सरकार ने बाजरे की खरीद के लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया, जिसके बाद राज्य सरकार ने इसे अपनी मजबूरी बताया। लेकिन क्या यह वास्तव में किसानों की मदद के बजाय एक राजनीतिक खेल है, जहां राज्य और केंद्र सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहेगा, जबकि किसानों की स्थिति जस की तस रहेगी?
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