संपत्ति विवाद से गरमाया उदयपुर राजपरिवार! सिटी पैलेस गेट बंद होने की क्या है वजह?
Udaipur royal family property dispute: भारत के इतिहास में राजघरानों का गौरवशाली स्थान रहा है, और उनकी परंपराएं सदियों से लोगों को आकर्षित करती रही हैं। हालांकि लोकतंत्र के आने के बाद (Udaipur royal family property dispute)राजशाही औपचारिक रूप से समाप्त हो गई, लेकिन राजघराने आज भी अपनी सांस्कृतिक और परंपरागत धरोहर को बनाए हुए हैं। उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में हाल ही में एक ऐसी रस्म हुई, जिसने प्राचीन राजपरंपराओं की झलक पेश की, लेकिन इसके साथ ही विवादों ने भी जोर पकड़ लिया।
उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बड़े बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ को गद्दी पर बैठाने की परंपरा निभाई गई। चित्तौड़गढ़ किले के फतह प्रकाश महल में खून से राजतिलक की रस्म पूरी की गई, जो मेवाड़ राजपरिवार की एक ऐतिहासिक परंपरा है। लेकिन रस्म के बाद सिटी पैलेस में प्रवेश को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
विश्वराज सिंह मेवाड़ धूणी दर्शन के लिए उदयपुर के सिटी पैलेस पहुंचे, लेकिन गेट बंद कर दिए गए। यह घटना न केवल राजपरंपरा के सम्मान पर सवाल उठाती है, बल्कि हाल ही में सिटी पैलेस को लेकर हुए विवादों को भी फिर से उजागर करती है।
उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में प्रॉपर्टी विवाद: 1983 से जारी संघर्ष
उदयपुर के आखिरी महाराणा भगवत सिंह ने 1963 से 1983 के बीच राजपरिवार की कई प्रॉपर्टीज को लीज पर दिया और कुछ में हिस्सेदारी बेच दी। इनमें लेक पैलेस, जग निवास, जग मंदिर, फतह प्रकाश, शिव निवास, गार्डन होटल, और सिटी पैलेस म्यूजियम जैसी संपत्तियां शामिल थीं। यह संपत्तियां एक कंपनी को ट्रांसफर कर दी गईं, जिसके बाद परिवार के भीतर विवाद शुरू हो गया।
महेंद्र सिंह मेवाड़ का अपने पिता के खिलाफ कोर्ट केस
1983 में महेंद्र सिंह मेवाड़ ने अपने पिता भगवत सिंह के फैसले के खिलाफ कोर्ट में केस दायर किया। उन्होंने मांग की कि पैतृक संपत्तियों को "रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर" के बजाय समान रूप से बांटा जाए। यह रूल परिवार के बड़े बेटे को संपत्ति और गद्दी सौंपने की परंपरा थी। इस मामले के बाद पिता-पुत्र के बीच तनाव बढ़ गया।
भगवत सिंह ने संपत्तियां छोटे बेटे अरविंद सिंह के नाम की
भगवत सिंह ने 1984 में अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह को बना दिया। महेंद्र सिंह मेवाड़ को संपत्तियों और ट्रस्ट से बाहर कर दिया गया। इसके बाद दोनों भाई अलग-अलग रहना शुरू कर दिया—अरविंद सिंह शंभू निवास में और महेंद्र सिंह समोर बाग में रहने लगे।
37 साल बाद आया अदालत का फैसला
2020 में 37 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जिला अदालत ने फैसला दिया।
- भगवत सिंह की बेची गई संपत्तियों को दावे में शामिल नहीं किया गया।
- तीन संपत्तियां—शंभू निवास, बड़ी पाल, और घास घर—को चार हिस्सों में बांटा गया।
- कोर्ट ने शंभू निवास को चार-चार साल के लिए महेंद्र सिंह, योगेश्वरी, और अरविंद सिंह को आवंटित किया।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और रोक
2022 में राजस्थान हाईकोर्ट ने जिला अदालत के फैसले पर रोक लगाई।
- शंभू निवास, घास घर, और बड़ी पाल अरविंद सिंह के पास ही रहेंगे।
- प्रॉपर्टीज के व्यवसायिक उपयोग और थर्ड पार्टी ट्रांसफर पर रोक जारी रहेगी।
विवाद का मौजूदा हाल
उदयपुर का यह प्रॉपर्टी विवाद अब भी कानूनी उलझनों में फंसा हुआ है। अदालत के अंतिम निर्णय का इंतजार है, और इस दौरान राजपरिवार की संपत्तियों पर कई प्रतिबंध जारी हैं।
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