Ajmer Dargah: 'सरकार अपने लिखे को थूक से चाट नहीं सकती' अजमेर दरगाह विवाद पर बोले दीवान जैनुअल आबेदीन ?
Ajmer Sharif Dargah: राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर के दावे के बाद विवाद छिड़ गया है। (Ajmer Sharif Dargah) इस मामले में 20 दिसंबर को अदालत में सुनवाई होनी है, मगर इससे पहले इस मुद्दे पर देशभर में सियासत गर्मा गई है। आज पहली बार दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया है।
'कच्ची कब्र के नीचे मंदिर कैसे आएगा ?'
अजमेर शरीफ दरगाह है या शिव मंदिर, इस मुद्दे पर अदालत में सुनवाई 20 दिसंबर को होनी है। मगर पिछले तीन दिन से यह मुद्दा देशभर में सुर्खियों में बना हुआ है। तमाम राजनीतिक दलों के साथ अल्पसंख्यक नेताओं के इस मसले पर बयान आ रहे हैं। इस बीच पहली बार अजमेर शरीफ दरगाह के दीवान जैनुअल आबेदीन ने भी बयान दिया। उन्होंने कहा कि गरीब नवाज जब तशरीफ लाए, उस जमाने में यह कच्चा मैदान था। जहां कब्र होगी वह भी कच्ची होगी। उसके नीचे मंदिर कहां से आ सकता है?
अजमेर दरगाह विवाद पर पहली बार बोले दीवान जैनुअल आबेदीन
अजमेर दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने कहा -
"द प्लेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 में क्लियर है, 15 अगस्त 1947 को इंडिया के अंदर जितने भी धार्मिक स्थल है, उनको वैसा का वैसा रखने के आदेश दिए थे, ऐसे में अब सरकार अपने लिखे को थूक से चाट… pic.twitter.com/i6iqBuRCTY
— Rajasthan First (@Rajasthanfirst_) November 30, 2024
'सरकार अपना लिखा चाट नहीं सकती'
अजमेर दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने कहा कि इस मामले में ना तो कोई नोटिस दिया गया और ना ही ख्वाजा साहब के वंशज को पार्टी बनाया गया। द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 साफ कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 तक के धर्म स्थल यथास्थिति रहेंगे। सरकार अपने लिखे को थूक से चाट नहीं सकती। जैनुअल आबेदीन का कहना है कि दरगाह को लेकर 1950 में भी जांच हुई थी, इसकी रिपोर्ट सरकार के पास है।
अजमेर दरगाह को लेकर दीवान के दावे
अजमेर दरगाह के दीवान जैनुअल आबेदीन का दावा है कि 1829 में अजमेर कमांडर ने दरगाह को लेकर रिपोर्ट तैयार की थी। इसके अलावा जेम्स टॉड ने भी अपनी किताब में अजमेर दरगाह का जिक्र किया है। 1716 में लिखी गई किताब एनसाइक्लोपीडिया मैट्रिक में भी दरगाह का पूरा इतिहास है।
1961 में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में भी दरगाह का इतिहास है। फरवरी 2002 में भारत सरकार ने दरगाह प्रशासन और संपत्ति को लेकर JPC बिठाई थी। इसमें भी दरगाह की पूरी जानकारी है। मालवा के बादशाह के पोते ख्वाजा हुसैन नागौरी को मिले इनाम के पैसों से ख्वाजा साहब का गुबंद और जन्नती दरवाजा बनवाया गया था। पहले दो कच्चे मजार थे, जिन्हें 150 साल बाद पक्का किया गया। हम अदालत में इसका जवाब देंगे।
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