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राजपरिवार में शोक, लेकिन क्या संपत्ति विवाद की लड़ाई होगी और तीखी? मेवाड़ की विरासत पर मंडराए बादल

इस दुखद घटना के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या अब राजपरिवार की संपत्ति को लेकर चला आ रहा विवाद खत्म होगा, या फिर यह नया मोड़ लेगा?
12:07 PM Mar 16, 2025 IST | Rajesh Singhal
इस दुखद घटना के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या अब राजपरिवार की संपत्ति को लेकर चला आ रहा विवाद खत्म होगा, या फिर यह नया मोड़ लेगा?

Arvind Singh Mewar: राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक मेवाड़ राजवंश एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह है उदयपुर राजपरिवार के प्रमुख सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ का निधन। उनका जाना न सिर्फ मेवाड़ की शाही परंपराओं के लिए एक अपूरणीय क्षति है, बल्कि उनके निधन के साथ ही राजपरिवार की संपत्ति को लेकर वर्षों से चला आ रहा विवाद भी फिर से सुर्खियों में आ गया है।

80 वर्षीय अरविंद सिंह मेवाड़, जो कि महाराणा प्रताप के वंशज और उदयपुर के सिटी पैलेस के संरक्षक थे, लंबे समय से बीमार थे। उनका इलाज शंभू निवास में चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। (Arvind Singh Mewar)उनके निधन के बाद न सिर्फ उदयपुर बल्कि पूरे मेवाड़ में शोक की लहर दौड़ गई।

हालांकि, इस दुखद घटना के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या अब राजपरिवार की संपत्ति को लेकर चला आ रहा विवाद खत्म होगा, या फिर यह नया मोड़ लेगा? पिछले कुछ वर्षों से सिटी पैलेस, एचआरएच ग्रुप ऑफ होटल्स और अन्य शाही संपत्तियों को लेकर परिवार में मतभेद गहराते रहे हैं। महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच चला आ रहा यह विवाद कोर्ट तक भी पहुंच चुका है। अब, अरविंद सिंह के निधन के बाद, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राजपरिवार इस विवाद को सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ाएगा या फिर यह संघर्ष और तेज होगा?

 

महाराणा प्रताप के वंशज...शाही विरासत के रक्षक

अरविंद सिंह मेवाड़ सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति, इतिहास और परंपराओं के जीवंत प्रतीक थे। वे महाराणा प्रताप के वंशज थे और शाही परंपराओं को सहेजने में उनका योगदान अतुलनीय था। उनके पिता भागवत सिंह मेवाड़ और माता सुशीला कुमारी मेवाड़ की विरासत को उन्होंने आगे बढ़ाया और उदयपुर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पारिवारिक विवादों में भी रहे चर्चा में

हालांकि, उनका जीवन केवल गौरवशाली विरासत तक सीमित नहीं था। वे पारिवारिक संपत्ति विवादों के कारण भी चर्चा में रहे। उनके बड़े भाई महेन्द्र सिंह मेवाड़ का निधन पिछले साल नवंबर 2024 में हुआ था, जिसके बाद परिवार के भीतर राजतिलक और संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद और बढ़ गया।

महेन्द्र सिंह मेवाड़ के राजतिलक के बाद, सिटी पैलेस में धूणी दर्शन के दौरान गेट बंद कर दिए गए, जिससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया। प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद ही कुछ लोगों को धूणी दर्शन की अनुमति दी गई। यह सब मेवाड़ राजपरिवार की संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर लंबे समय से चल रहे विवादों के कारण हुआ था।

रुल ऑफ प्राइमोजेनीचर...कानूनी लड़ाई

यह विवाद रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर (Primogeniture Rule) के कारण और जटिल हो गया था। इस प्रथा के अनुसार, परिवार का सबसे बड़ा बेटा ही राजा और संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है। पूर्व महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ ने 1963 से 1983 के बीच कई संपत्तियों को लीज पर दिया था, जिसे लेकर महेन्द्र सिंह मेवाड़ ने कोर्ट में केस दाखिल किया।

महेन्द्र सिंह का कहना था कि पैतृक संपत्तियों को सभी में बराबर बांटा जाए, जबकि भगवत सिंह ने कोर्ट में दलील दी कि यह "इम्पोर्टेबल एस्टेट" है, जिसे कानूनी रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता। यह कानूनी विवाद वर्षों तक चलता रहा और मेवाड़ राजघराने के भीतर विभाजन की स्थिति बनी रही।

पर्यटन...धरोहर संरक्षण में उनका योगदान

अरविंद सिंह मेवाड़ ने न सिर्फ राजवंश की परंपरा को आगे बढ़ाया, बल्कि उन्होंने उदयपुर के पर्यटन और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। वे एचआरएच ग्रुप ऑफ होटल्स के अध्यक्ष थे, जिसने सिटी पैलेस, जग मंदिर, फतेह प्रकाश पैलेस जैसे ऐतिहासिक स्थलों को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के केंद्रों में बदला।

उन्होंने महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन और महाराणा मेवाड़ ऐतिहासिक प्रकाश ट्रस्ट के माध्यम से शिक्षा, धरोहर संरक्षण और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान दिया। अरविंद सिंह मेवाड़ का अंतिम संस्कार सोमवार (17 मार्च) को राजघराने की परंपरा के अनुसार किया जाएगा। सुबह 7 बजे से उनके अंतिम दर्शन किए जा सकेंगे, और उनकी अंतिम यात्रा शंभू निवास से महासतिया तक निकलेगी।

मेवाड़ की अपूरणीय क्षति

अरविंद सिंह मेवाड़ का निधन केवल एक परिवार के मुखिया का जाना नहीं है, बल्कि यह मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास का एक अध्याय समाप्त होने जैसा है। उनकी शख्सियत, उनका योगदान और उनकी विरासत हमेशा राजस्थान और भारत की धरोहर का अभिन्न हिस्सा बनी रहेगी। उनका जाना उदयपुर, राजस्थान और पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

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