हीरे-जवाहरात और नोटों के गड्डी वाले मंदिर में मिली 58 किलो अफीम! नारकोटिक्स विभाग देखकर रह गया सन्न
Chittorgarh News: राजस्थान के श्री सांवलियाजी मंदिर में जो कुछ हुआ, उसने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी। मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा मन्नत पूरी होने पर चढ़ाई गई 58 किलो अफीम को नारकोटिक्स विभाग ने जब्त कर लिया। यह कोई तस्करी नहीं थी, बल्कि मेवाड़ और मालवा के किसान वर्षों से अच्छी फसल के बदले अफीम चढ़ाने की परंपरा निभाते आ रहे हैं। (Chittorgarh News)किसान नकदी और अन्य भेंट के साथ प्लास्टिक की थैलियों में अफीम चढ़ाते हैं, जिसे मंदिर भंडार में जमा कर लिया जाता है। यह परंपरा दशकों से चली आ रही थी, लेकिन इस बार एक RTI कार्यकर्ता की शिकायत ने पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया।
गर्भगृह के तहखाने से मिली 58 किलो अफीम!
गुरुवार को नीमच, मंदसौर और प्रतापगढ़ से आई नारकोटिक्स विभाग की दो टीमें सांवलियाजी मंदिर पहुंचीं और गर्भगृह के नीचे बने तहखाने में रखी गई अफीम की जांच की। विभाग इस बार इलेक्ट्रॉनिक कांटे भी साथ लाया था ताकि अफीम का सही वजन किया जा सके। करीब चार घंटे तक चली इस कार्रवाई में 58 किलो अफीम जब्त कर ली गई।
भक्तों को मिलता था ‘अफीम प्रसाद’
इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि कुछ साल पहले तक यह अफीम मंदिर के पुजारियों द्वारा खुद उपयोग की जाती थी। इतना ही नहीं, इसे विशिष्ट भक्तों को प्रसाद के रूप में भी दिया जाता था। जब यह मामला चर्चाओं में आने लगा, तो मंदिर प्रशासन ने इसे खुद के नियंत्रण में ले लिया और अफीम को तहखाने में रखना शुरू कर दिया। लेकिन, यह समाधान ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया।
खोला ‘काले चढ़ावे’ का राज!
जब यह मामला दबा ही रह गया था, तभी एक RTI कार्यकर्ता ने इसकी शिकायत सीधे नारकोटिक्स विभाग से कर दी। इसके बाद विभाग ने छापेमारी कर अफीम को जब्त कर लिया। जांच के दौरान अतिरिक्त जिला कलेक्टर (ADM) प्रभा गौतम भी मौजूद रहीं, लेकिन उन्होंने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया। उनका बयान था कि इस पर सिर्फ नारकोटिक्स विभाग ही टिप्पणी करेगा।
अब क्या होगा?
इस खुलासे के बाद मंदिर प्रशासन ने एक बड़ा फैसला लिया है। भविष्य में हर चतुर्दशी पर भंडार से निकली अफीम को पुलिस की निगरानी में तौलकर पुलिस को सौंप दिया जाएगा। इससे अफीम के दुरुपयोग की संभावनाओं को खत्म किया जा सकेगा।
परंपरा या अपराध?
अब इस मामले ने एक गंभीर बहस को जन्म दे दिया है। क्या धार्मिक स्थलों पर ऐसे चढ़ावे को जारी रखना उचित है? क्या यह सिर्फ एक आस्था की परंपरा है या फिर कानून का उल्लंघन? प्रशासन और भक्तों के लिए यह एक चुनौती बन गया है कि क्या इस परंपरा को बनाए रखा जाए या इसे पूरी तरह से रोक दिया जाए? नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई के बाद इस मामले में कई बड़े फैसले होने बाकी हैं, लेकिन एक बात तय है...अब यह मामला और ज्यादा तूल पकड़ने वाला है!
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