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आखिर जिंदगी की जंग हार गई चेतना, 220 घंटे बोरवेल में फंसी रही... पोस्टमार्टम में होगा अब खुलासा!

Kotputli Borewell Incident: (हिमांशु सेन): बोरवेल में फंसी तीन वर्षीय चेतना को आखिरकार 10 दिनों की निरंतर कोशिशों के बाद बुधवार (1 जनवरी) को रेस्क्यू टीम ने बाहर निकाला। लेकिन, जितना लंबा और संघर्षपूर्ण था यह रेस्क्यू ऑपरेशन, उतना ही दुखद...
07:05 PM Jan 01, 2025 IST | Rajesh Singhal

Kotputli Borewell Incident: (हिमांशु सेन): बोरवेल में फंसी तीन वर्षीय चेतना को आखिरकार 10 दिनों की निरंतर कोशिशों के बाद बुधवार (1 जनवरी) को रेस्क्यू टीम ने बाहर निकाला। लेकिन, जितना लंबा और संघर्षपूर्ण था यह रेस्क्यू ऑपरेशन, उतना ही दुखद था उसका परिणाम। चिकित्सकों की देखरेख में तुरंत जिला अस्पताल भेजी गई चेतना को बचाया नहीं जा सका। (Kotputli Borewell Incident)उसकी मां को पहले ही आशंका थी कि उनकी मासूम लाडली शायद जीवित नहीं रही होगी, क्योंकि 10 दिनों तक वह बोरवेल में भूखी-प्यासी पड़ी रही। मां और पिता का दिल टूट चुका है, और उनकी आंखों में एक ऐसी गहरी उदासी है, जो शब्दों में नहीं कह सकता। परिजन उनका ढाढस बढ़ा रहे हैं, लेकिन इस दर्द को कोई भी कम नहीं कर सकता।

 चेतना की मौत ने सबको शोक में डुबो दिया"

गांव के लोग दिन-रात एक ही सवाल से परेशान थे, "क्या चेतना को बाहर निकाल लिया जाएगा?" पूरा गांव चिंता और उम्मीद के बीच संघर्ष कर रहा था। लेकिन समय बीतता गया और जैसे-जैसे रेस्क्यू ऑपरेशन लंबा खिंचता गया, उम्मीदें धुंधली होती गईं। 10वें दिन आखिरकार चेतना को बोरवेल से बाहर निकाला गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान टीम को कई कारणों से बाधाएं आईं, जिनकी वजह से प्रक्रिया में देरी हुई।

"30 दिसंबर को रेस्क्यू की उम्मीदें टूटीं"

रेस्क्यू टीम को शुरुआत में उम्मीद थी कि चेतना को सोमवार, 30 दिसंबर को बाहर निकाला जा सकेगा, लेकिन सुरंग की खुदाई के दौरान एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम दिशा भटक गई। इस वजह से बालिका को उस दिन भी बाहर नहीं निकाला जा सका। गांववालों के लिए यह निराशा का पल था, क्योंकि वे विश्वास कर रहे थे कि जल्द ही राहत मिलेगी।

"प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा रेस्क्यू अभियान"

यह रेस्क्यू अभियान प्रदेश का सबसे बड़ा और चुनौतीपूर्ण अभियान बन गया। अब तक हुए सभी बोरवेल रेस्क्यू अभियानों में बोरवेल की गहराई 50 से 75 फीट तक रही थी, लेकिन यह रेस्क्यू 170 फीट गहरे बोरवेल से किया जा रहा था। इस गहराई के कारण रेस्क्यू टीम को अत्यधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी मेहनत ने अंततः बालिका को बाहर निकालने में सफलता दिलाई।

"कठिन सुरंग खुदाई और रेस्क्यू की जटिलता"

चेतना को बोरवेल से बाहर निकालने के लिए 170 फीट गहरी और 36 इंच व्यास वाली एक दूसरी सुरंग खुदाई गई। सुरंग में पत्थर की मजबूती ने रेस्क्यू टीम के काम को और भी कठिन बना दिया। एनडीआरएफ और रैट माइनर को इस पत्थर को तोड़कर हॉरिजेन्टल सुरंग बनानी पड़ी, जिससे बालिका तक पहुंचा जा सके। हालांकि, यह पूरी प्रक्रिया बेहद समय लेने वाली और चुनौतीपूर्ण थी।

"पहले प्लान में विफलता, फिर दूसरा प्लान अपनाया गया"

शुरुआत में रेस्क्यू टीम ने हुक के जरिए चेतना को 15 फीट तक ऊपर खींचने की कोशिश की थी, लेकिन मिट्टी के गिरने से बालिका हुक से बाहर निकल गई और फिर से 150 फीट गहरी जगह पर अटक गई। इसके बाद दूसरे प्लान के तहत सामानन्तर खुदाई की गई, जिससे अंततः सुरंग तैयार हुई और बालिका को बाहर निकाला जा सका।

"23 दिसम्बर को बोरवेल में गिर गई थी चेतना"

कोटपूतली के किरतपुरा गांव की तीन वर्षीय चेतना 23 दिसम्बर को खेलते वक्त 150 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई थी। जैसे ही प्रशासन को सूचना मिली, उसी दिन रात 9 बजे रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंची और बचाव अभियान शुरू किया। अगले दिन, ज शेप हुक से बालिका को बाहर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन मिट्टी ढहने के कारण वह फिर से 150 फीट पर अटक गई। इसके बाद सुरंग खोदने का नया तरीका अपनाया गया, और 10 दिनों के संघर्ष के बाद चेतना को बाहर निकाला गया।

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