• ftr-facebook
  • ftr-instagram
  • ftr-instagram
search-icon-img

किसी की डूबी लुटिया तो कोई लगा नैया पार....चुनावी नतीजों में राजस्थान के 'दलबदलू' नेताओं के क्या हाल?

Rajasthan Loksabha Election 2024: राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 साल बाद वापसी करते हुए दहाई का आंकड़ा पार कर लिया जहां कांग्रेस को 8 और गठबंधन के सहयोगियों को 3 सीटों पर जीत मिली है. वहीं दो...
featured-img

Rajasthan Loksabha Election 2024: राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 साल बाद वापसी करते हुए दहाई का आंकड़ा पार कर लिया जहां कांग्रेस को 8 और गठबंधन के सहयोगियों को 3 सीटों पर जीत मिली है. वहीं दो बार से लगाकार क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी इस बार 14 सीटें ही जीत पाई. सूबे में बीजेपी 25 साल पीछे खिसकते हुए 1999 के चुनावी नतीजों के आंकड़ों पर पहुंच गई. चुनावी नतीजों के बाद अलग-अलग स्तर पर विश्लेषण और श्रेय लेने का सिलसिला जारी है लेकिन इस बीच दलबदल करने वाले नेताओं की चर्चा होना भी जरूरी हो जाता है.

दरअसल चुनावों से पहले राजस्थान और देशभर में कई नेता हर बार पाला बदलते हैं और राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही हाल देखा गया जहां विधानसभा चुनावों के बाद से लोकसभा चुनावों तक कई नेताओं ने पाला बदला, किसी के सिर नाराजगी चढ़ती है तो किसी को हार का डर सताता है जिसके चलते नेता पाला बदलने का रास्ता एख्तियार करते हैं.


राजस्थान में इस बार 5 बड़े चेहरों ने दल बदल किया ऐसे में अब चुनाव के बाद ये देखना जरूरी हो जाता है कि लोकसभा चुनावों में जनता ने उन्हें नकार दिया या जीताकर दिल्ली भेजा. बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले पाला बदलने वाले राजस्थान के 3 दिग्गज नेता जहां चुनाव हार गए तो 2 नेताओं को दलबदल करने के बावजूद जनता ने जिताकर दिल्ली भेजा है.

बांसवाड़ा से महेंद्रजीत सिंह मालवीया का सबकुछ लुटा!

सूबे में दलबदल करने के बाद हारने वालों में सबसे पहला नाम दिग्गज नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीया है जो बांसवाड़ा-डूंगरपुर से भाजपा प्रत्याशी थे और मालवीया को भारत आदिवासी पार्टी के सुप्रीमो राजकुमार रोत ने 2 लाख 47 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया। मालवीया ने लोकसभा चुनावों से कुछ समय पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था और इसके बाद बीजेपी ने उन्हें बांसवाड़ा से लोकसभा का टिकट दिया था.

अब जब लोकसभा चुनावों के नतीजे आ गए हैं तो महेंद्रजीत सिंह मालवीया के पास कुछ भी नहीं बचा है जहां वह सांसदी पर जीत नहीं दर्ज कर पाए और उनकी बागीदौरा से विधायकी भी चली गई. मालवीय कांग्रेस में एआईसीसी तक गए जहां उन्हें कई पदों पर जिम्मेदारी मिली लेकिन लोकसभा चुनावों से पहले बाप से गठबंधन की सुगबुगाहट और नेता प्रतिपक्ष जैसा पद नहीं दिए जाने से मालवीय नाराज चल रहे थे.

नागौर से खतरे में ज्योति मिर्धा का राजनीतिक भविष्य!

वहीं दलबदल करने वालों में दूसरा बड़ा नाम नागौर से भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा का है जिन्हें गठबंधन प्रत्याशी और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने 42 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी है। ज्योति ने पिछले साल विधानसभा चुनावों से पहले हाथ का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था जिसके बाद उन्हें नागौर से बीजेपी ने विधायकी का टिकट दिया था लेकिन वहां भी उनको हार मिली।

इसके बाद लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने एक बार फिर उन्हें नागौर से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया लेकिन इस बार भी उनकी राजनीतिक किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया औऱ लगातार उनकी दूसरी हार हुई।

कांटे की टक्कर में हारे कोटा के प्रहलाद

वहीं तीसरे नाम का जिक्र करें तो कोटा में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन करने वाले प्रहलाद गुंजल का है जहां कोटा से भाजपा प्रत्याशी ओम बिरला ने करीब 42 हजार वोटों से हरा दिया है। प्रहलाद गुंजल दशकों से बीजेपी में राजनीति करते रहे हैं लेकिन कोटा के कद्दावर नेता ओम बिरला से उनकी हमेशा ठनी रही।

इधर लोकसभा चुनाव में यह टसल इतनी बढ़ गई कि बीजेपी से जैसे ही ओम बिरला का टिकट पक्का हुआ प्रहलाद गुंजल ने मोर्चा खोल दिया और बीजेपी छोड़ने का ऐलान कर दिया। इसके बाद गुंजल ने कांग्रेस जॉइन की और उन्हें कोटा से लोकसभा चुनाव का टिकट मिला। हालांकि गुंजल ने ओम बिरला को कड़ी चुनौती दी और बिरला जैसे दिग्गज को 40 हजार के मार्जिन तक ला दिया जिसने हर किसी को चौंका दिया।

दो नेताओं की नैया भी हुई पार

वहीं दूसरी ओर चूरू से कांग्रेस प्रत्याशी राहुल कस्वां ने 72 हजार से अधिक वोटों से भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र झाझड़िया को हराकर इस सीट पर कब्जा किया है। चुरू से बीजेपी का टिकट कटने से नाराज राहुल कस्वां ने चुनावों से पहले कांग्रेस जॉइन कर ली थी जिसके बाद कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने मजबूती से चुनाव लड़ा। चुरू में चुनाव जाट वर्सेज राजपूत हो गया था जिसके चलते बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा.

इसके अलावा बाड़मेर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन करने वाले उम्मेदाराम बेनीवाल ने बीजेपी के मंत्री कैलाश चौधरी को 1 लाख से अधिक के मार्जिन से हराया. इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी भी मैदान में थे लेकिन लो भी हार गए. बेनीवाल ने पिछले साल बायतू से विधानसभा चुनाव भी लड़ा था जिसमें भी वो हरीश चौधरी के सामने हार गए थे.

.

tlbr_img1 होम tlbr_img2 शॉर्ट्स tlbr_img3 वेब स्टोरीज़ tlbr_img4 वीडियो