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भारतीय न्याय संहिता के बाद कितना बदल जाएगा कानून का तंत्र? टोंक SP संजीव नैन ने समझाया पूरा गणित

Bhartiya nyay Sanhita: देशभर में बीते सोमवार से 3 नए आपराधिक कानून लागू हो गए जहां भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023 से ही अब कानून का पूरा सिस्टम...
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Bhartiya nyay Sanhita: देशभर में बीते सोमवार से 3 नए आपराधिक कानून लागू हो गए जहां भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023 से ही अब कानून का पूरा सिस्टम चलेगा. केंद्र सरकार के इन 3 नए कानूनों ने ब्रिटिश कालीन कानूनों क्रमशः भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ले ली है. अब सभी नई एफआईआर बीएनएस के तहत दर्ज की जा रही है. आइए जानते हैं नए कानून में अपराधों पर किस तरह अंकुश लगेगा औऱ कानून का तंत्र अब कैसे पूरा बदल जाएगा.

राजस्थान फर्स्ट ने टोंक के एसपी संजीन नैन से बात की जहां उन्होंने बताया कि बदलते परिवेश में ये नए कानून स्वाभाविक है और कानून में दंड की जगह न्याय को जोड़ा जाना महत्वपूर्ण है और इसके साथ ही टेक्नोलॉजी और साक्ष्य संकलन को भी इसमें शामिल किया गया है.

एसपी के मुताबिक नए कानूनों को लेकर पुलिस स्टाफ को प्रशिक्षित करने के साथ जागरुकता कार्यक्रम, वर्कशॉप के जरिए अवेयर किया जाएगा. वहीं पुराने कानून में कई धाराएं जो काम की नहीं थी उन्हें परिवर्तित करने के साथ ही टेक्नॉलोजी व साक्ष्य को भी अब शामिल किया गया है. उन्होंने बताया कि इन कानूनों में मुख्य रुप से न्याय पर फोकस किया गया है.

नए कानूनों में तकनीक का शानदार इस्तेमाल

एसपी ने आगे बताया कि समय-समय पर स्पेशल एक्ट बदलते रहे हैं लेकिन मेजर कानून व प्रक्रियाओं में पहली बार बदलाव किया गया है. उन्होंने बताया कि हमारी जिंदगी में बढ़ते तकनीकी के दखल को देखते हुए इन कानूनों में भी तकनीकी के अधिकतम इस्तेमाल पर जोर दिया गया है. वहीं ज्यादातर कानूनी प्रक्रियाओं को डिजिटलाइज करने का प्रावधान इन कानूनों में किया गया है. इसके अलावा ई-एफआईआर को लेकर एसपी ने बताया कि इसके जरिए ऑनलाइन मिलने वाली शिकायत पर संबंधित व्यक्ति 3 दिन में संबंधित थाने पर उपस्थित होना होगा और अगर उसके बाद एफआईआर दर्ज होने की प्रक्रिया होगी.

बिना पारिश्रमिक सामुदायिक सेवा

वहीं कानून के जानकार एडवोकेट महावीर तोगड़ा ने बताया कि पूर्व में जहां भारतीय दंड संहिता में अपराध के दंडों के प्रकार में मृत्युदंड, आजीवन कारावास, कारावास (जिनमें कठोर व साधारण कारावास शामिल थे), संपत्ति की जब्ती व जुर्माना से दंडित करने के प्रावधान थे लेकिन अब दंड के रूप में भारतीय न्याय संहिता में एक नया अध्याय सामुदायिक सेवा बिना पारिश्रमिक को भी शामिल किया गया है.

BNS में क्या-क्या बदल गया है?

लैंगिक अपराधों पर मृत्युदंड - महिलाओं व बालकों के विरुद्ध घटित होने वाले लैंगिक अपराधों में भी बदलाव कर सामूहिक बलात्कार के आरोपी को जीवित रहने तक आजीवन कारावास की सजा या मृत्युदंड से दंडित करने का प्रावधान करने के साथ-साथ इस अधिनियम की धारा 72 व 73 में बलात्कार पीड़ित की पहचान का प्रकटीकरण, मुद्रण या प्रकाशन न्यायालय की पूर्वानुमति के बिना प्रतिबंधित करते हुए ऐसा करने पर 2 साल की जेल का प्रावधान किया है ।

झपटमारी (स्नैचिंग) को नया अपराध - भारतीय दंड संहिता में शामिल 124 ए धारा में राजद्रोह के अपराध को नई बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) में विलोपित कर धारा 152 के तहत भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य को दंडनीय अपराध बनाया है। चैन स्नेचिंग आदि की घटनाओं के मध्यनजर बीएनएस में झपटमारी (स्नैचिंग) को नया अपराध घोषित कर धारा 304 के तहत दंडित प्रावधान रखा है.

आत्महत्या का प्रयास दंडनीय - भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 226 के तहत किसी लोक सेवक को अपने शासकीय कर्तव्य करने या शासकीय कर्तव्यों का निर्वहन करने से विरत रहने के आशय या करने के लिए आत्महत्या का प्रयास करने पर इसे दंडनीय अपराध बनाते हुए दोषसिद्ध होने पर कारावास या जुर्माना या सामुदायिक सेवा से दंडनीय अपराध घोषित किया है.

  • (टोंक से कमलेश कुमार महावर की रिपोर्ट)

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