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Madhavrai Mandir Gujarat: समुद्र से निकले इस मंदिर में होते हैं अदभुत चमत्कार, पूरी होती है हर मनोकामना

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Image Credit: Rajasthan First

Madhavrai Mandir Gujarat: गुजरात अपने भौगोलिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से दुनिया में अलग ही महत्व रखता है जिसके एक तरफ गर्व से खड़ा गिरनार है तो वहीं दूसरी तरफ लंबा समुद्र तट। जिसके साथ इतिहास के कई प्रसंग जुड़े हुए हैं । समुद्र के तट पर बसा गुजरात (Madhavrai Mandir Gujarat) का पोरबंदर शहर कई मायनों में विशेष है। जिनमें से एक घेड माधवपुर के सुंदर तट पर बसे श्री माधवराय जी का मंदिर है। माधवराय मंदिर का पौराणिक गौरवपूर्ण इतिहास इसे कई मायनों में विशेष बनाता है।

भगवान कृष्ण का सबसे पुराना और ऐतिहासिक स्थान

पौराणिक कथाओं के अनुसार घेड माधवपुर का माधवराय मंदिर (Madhavrai Mandir Gujarat) भगवान कृष्ण का सबसे पुराना और ऐतिहासिक स्थान माना जाता है। इसका ऐतिहासिक प्रमाण इस मंदिर से सटकर ही खडे़ पुराने मंदिर की संरचना है। जहां भगवान की मूर्ति तो नहीं है लेकिन जर्जर हो चुके इस मंदिर को देखकर समय के प्रहार का अंदाजा आसानी से हो जाता है। मान्यता है कि ये दोनों ही मंदिर माधवरायजी के ही मंदिर हैं । जिनमें से पुराना मंदिर 12 वीं शताब्दी का और दूसरा मंदिर 17 वीं शताब्दी का है।

मंदिर का गौरवपूर्ण इतिहास

माधवराय मंदिर (Madhavrai Mandir Gujarat) का इतिहास बेहद विशेष और अनोखा है। बता दें कि यहां स्थापित माधवरायजी और त्रिकमरायजी के विग्रह की ये मूर्तियां भक्तों को आकर्षित करती हैं। यहां के सेवक रुचित भाई ने बताया "माधवपुर के पवित्र भूमि पर माधवराय जी के साथ त्रिकमराय जी, गोपालाल और रुक्मिणी के स्वरूप भी विराजमान हैं। द्वारका और डाकोर में ठाकोर जी चतुर्भुज स्वरूप में मौजूद हैं। आमतौर पर हर जगह ठाकोर जी की दो भुजा ऊपर और दो भुजा नीचे की तरफ हैं। लेकिन यहां जो माधवराय जी और त्रिकमराय जी का स्वरूप है, उनकी तीन भुजा ऊपर और एक भुजा नीचे है। ऐसा दूसरा स्वरूप दुनिया में कहीं नहीं है।"

रेत से आधा दबा हुआ है यह मंदिर

माधवरायजी (Madhavrai Mandir Gujarat) का 12वीं शताब्दी का पौराणिक मंदिर सोलंकी शैली में बना है जो 16 स्तंभ पर आधारित सिंह मंडप और वर्तुलाकार शिखर से पूर्ण प्रतीत होता है। मंदिर का उत्तम शिल्प प्राचीनता और भूतकाल की कला समृद्धि को दर्शाता है। समुद्र के तट की रेत से आधा दबा हुआ यह मंदिर अपने आप में प्राचीन इतिहास को संजोए हुए है। मान्यताओं के अनुसार यहां पहले समुद्र ही था जो धीरे -धीरे धरातल पर आ गया और अवशेषों से इस मंदिर की पुष्टि हो पायी । जिस कारण इस मंदिर को पुरातत्व के अवशेष के रूप में भी संरक्षित रखा गया है। माधवराय जी मंदिर (Madhavrai Mandir Gujarat) के सेवक रुचित भाई ने बताया “माधवराय जी मंदिर में पहले केवल समंदर था। पीछे की तरफ जो पुराना मंदिर है, वहीँ ये स्वरूप विराजमान थे। शायद प्रभु की इच्छा बाहर प्रकट होने की हुई इसलिए समुद्र ने हटकर जगह बनाई, जहां से पुराना मंदिर बाहर निकला। "

इस ऐतिहासिक मंदिर के इतिहास पर और भी ज्यादा प्रकाश डालते हुए सेवक रुचित भाई ने बताया "ठाकोर जी पहले पुराने मंदिर में विराजित थे, उसके बाद पोरबंदर के राजा नटवर सिंह जी की धर्मपत्नी रूपाली बा ने यहां नया मंदिर बनवाया। फिर ठाकोर जी की प्राण प्रतिष्ठा इस मंदिर में की गई। इसको भी करीब 275 साल हो गए हैं। पुराना मंदिर 12 वीं सदी का माना जाता है यानि मतलब करीब 800 से ज्यादा साल हो गए हैं इस मंदिर को। "

पौराणिक कथा

माधवराय मंदिर (Madhavrai Mandir Gujarat) की पौराणिक कथा बेहद प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी का विवाह हुआ था। माधवराय मंदिर के पुरोहित और ट्रस्टी जनक भाई ने बताया " माधवपुर पौराणिक गांव है, जो कृष्ण और रुक्मिणी का विवाह स्थान है। जब रुक्मिणी ने विदर्भ से कृष्ण जी को पत्र लिखा था, तब भगवान कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण करके एक संकल्प लिया था। इसमें उन्होंने विचार किया कि वे रुकमणी से ऐसी भूमि पर विवाह करेंगे, जो कुंवारी होगी जिस पर कोई पाप -पुण्य नहीं होगा। कृष्ण ने माधवपुर के समुद्र तट को विनती करके सवा गांव भूमि उधार मांगी और समुद्र ने पीछे हटकर सवा गांव जमीन दी थी।"

गुजराती में कहा जाता है...

माधवपुरनो मांडवो, आवे जादव कुलनी जान। परणे ते राणी रुक्मिणी वरवांछित श्री भगवान।
यानी, माधवपुरमें मंडप बना, आइ यादवकुल की बारात, ब्याह हे राणी रुक्मिणी का, वर है श्री भगवान।

कृष्णावतार के इस प्रसंग को जिवंत करने हेतु हर साल यहां रामनवमी से लेकर तेरस तक पांच दिन का यहां मेला लगता है। इस समय ट्रस्ट द्वारा रुक्मणि विवाह प्रसंग का भी आयोजन होता है। भगवान की शोभायात्रा निकाली जाती है। इतना ही नहीं , देव - दीपावली पर भी यहाँ तुलसी विवाह का भव्य आयोजन किया जाता है। पूरे साल में दो बार विवाहोत्सव के दौरान बहुत ज्यादा संख्या में लोग यहां आते हैं। माधवराय मंदिर के सेवक रुचित भाई ने आगे बताया "साल में दो बार ठाकुर जी का लग्नोत्सव मनाया जाता है। पिछले 4 वर्षों से सरकार ही ये उत्सव करा रही है। जिसमें लाखों की संख्या में लोग देश -विदेश से आते हैं। उसके बाद देव -दीपावली पर दो दिन तुलसी विवाह होता है।

होते हैं कई अदभुत चमत्कार

मंदिर (Madhavrai Mandir Gujarat) के साथ जुड़ी हुई मान्यतायें सिर्फ कथाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि भक्तों का अटूट विश्वास है कि माधवराय जी सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं । उनका मानना है कि जो भी भक्त यहां सच्ची श्रद्धा और भाव लेकर आते हैं उनकी रक्षा स्वयं ईश्वर करते हैं। श्रद्धालुगणों की माने तो इस दरबार में चमत्कारों की कमी नहीं है । यहां के पुरोहित व् ट्रस्टी जनक भाई ने बताया " ये अलौकिक स्वरूप भारत भर में कहीं नहीं है। चतुर्भुज स्वरूप में दो हाथ ऊपर और दो हाथ नीचे की तरफ होते हैं लेकिन यहां इनके तीन हाथ ऊपर की तरफ हैं एक ही हाथ नीचे है जिसमें शंख है, जो जलतत्व का प्रतीक माना गया है। सबसे ख़ास बात समुंदर पास होने के बाद भी इस भूमि का पानी मीठा है, जो कभी कम भी नहीं होता। यह गांव समुद्र से बाहर निकला हुआ गांव है। अगर कभी समुद्र इसे वापस डुबो दे तो क्या होगा ? भगवान ने गांव की रक्षा के लिए तीन चीजें रखी हैं। इनमें अग्नि,सुदर्शन चक्र और कमल हैं। “

प्रतिदिन 4 बार होती है आरती

महाप्रभुजी की 84 बैठक में से 66वीं बैठक माधवपुर में स्थित है। जहां ठाकोर जी (Madhavrai Mandir Gujarat) की सेवा करने के साथ दिन में 4 बार आरती भी उतारी जाती है। रोजाना मंगला आरती से लेकर शयन आरती तक सेवाक्रम चलता ही है। प्रतिदिन भगवान को विधिवत श्रृंगार किया जाता है। यहां के सेवक रुचित भाई भक्ति ने बताया " पहले तो लोगों को पता ही नहीं था कि यहां क्या होगा ? ठाकोर जी की सेवा क्या होती है ? यहां विराजे महाप्रभु जी की 84 बैठकें हैं इनमें से 66वीं बैठक माधवपुर में है। यहां नित्य उत्सव के अनुसार ठाकोर  जी को स्वर्ण चांदी और मोती के आभूषणों का श्रृंगार कराया जाता है। इस अदभुत श्रृंगार में प्रभु के स्वरूप का एक अलग ही तेज उभरकर निकलता है।”

स्थानीय नागरिकों के अनुसार अलग -अलग प्रसंग पर इन मूर्तिओं में भिन्न -भिन्न रंग दिखाई देते हैं । इतना ही नहीं यहां माधवरायजी के सानिध्य में शिवजी भी निवास करते हैं । माधवरायजी और त्रिकमरायजी के दर्शन करने के बाद भक्त कोटेश्वर महादेव की भी वंदना करते हैं । यहां आने वाले भक्त यहां हरि और हर के एक साथ दर्शन पाकर खुद को धन्य मानते हैं ।

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