Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham: पांडव कालीन मंदिर है कपिलेश्वर महादेव बहुदक धाम, यहां स्थापित है दुर्लभ शिवलिंग
Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham: खंभात का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। कहा जाता है कि आज से 1500 वर्ष पहले भी खंभात शहर विद्यमान था। खंभात में ऐसे अनेक प्राचीन स्थल हैं जहां आज भी इतिहास के प्रमाण मिलते हैं। खंभात शहर के आसपास ऐसे अनेक स्थान (Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham) हैं जिससे लोगों की अटूट श्रद्धा जुड़ी हुई है।
आपको बता दें कि जिस त्रंबावटी नगरी का उल्लेख आदि शक्ति की आरती में मिलता है वही त्रंबावटी नगरी आज का खंभात शहर है। महाभारत काल में पांडव भी अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर रुके थे और इसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। ऐसा ही एक प्रमाण है खंभात शहर के नजदीक स्थित पवित्र कपिलेश्वर महादेव बहुदक धाम (Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham)। इसे गुप्त तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
किसको समर्पित है खंभात का बहुदक धाम
खंभात का बहुदक धाम किसी एक भगवान को समर्पित नहीं है। यहां कपिलेश्वर महादेव (Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham) के साथ श्री भट्टादित्य सूर्य नारायण एवं बाला त्रिपुरा सुंदरी माता भी विराजमान है। यहां के सारे मंदिर अपने आप में विशेष हैं। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि यहां कपिल मुनि ने शिवजी की तपस्या की थी। तो नारद मुनि ने 100 वर्ष तक सूर्य नारायण के छंदों का विशुद्ध जाप करके उन्हे प्रसन्न किया था। जिसका प्रमाण है यहां का बहुदक कुंड।
मंदिर के पुजारी निलेशगीरी गोस्वामी ने राजस्थान फर्स्ट से बात करते हुए बताया ''यह पौराणिक और पांडव कालीन मंदिर है। यहां कपिल मुनि का आश्रम था। कपिल मुनि ने तपस्या करके भगवान को प्रसन्न कर वरदान स्वरूप यहां शिवलिंग स्थापित किया था। मंदिर के बगल में ही सूर्यनारायण भगवान (Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham) का मंदिर है। यहां नारद मुनि ने तपस्या की थी। इस स्थान पर महासुद सप्तमी के दिन यज्ञ होता है। यहां के कुंड के दर्शन करने से सभी तकलीफें दूर होती हैं। यहां पर बाला त्रिपुरा सुंदरी मां का भी मंदिर है, जो पांडव कालीन है।''
कई भगवान विराजमान हैं मंदिर में
आपको बता दें कि प्रांगण में गिरजासूत गणेश जी भी विराजमान है। रिद्धि-सिद्धि और मूषकराज के साथ। जनश्रुति है कि खंभात की धर्म नगरी में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने शरण ली थी और इसी स्थान पर उन्होंने भगवान शिव की पूजा की थी। यहां एक तहखाना भी है जो पांडवों के समय का माना जाता है। पांडव कालीन मंदिर (Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham) में आज भी पूजा अर्चना और यज्ञ हवन आदि की प्रथा चल रही है। यहां सूर्य देव प्रत्यक्ष मूर्ति स्वरूप नहीं है पर उनकी तस्वीर को रख कर नीचे सूर्य यंत्र स्थापित किया गया है। जिसकी भक्तगण पूजा करते हैं। दूसरी ओर देवी त्रिपुरा सुंदरी के गर्भग्रह में आरस का एक श्रीयंत्र स्थापित है। भक्त जाकर देवी और देवी यंत्र के दर्शन कर नतमस्तक होते हैं।
12 शिवलिंग स्थापित हैं यहां
यहां के बुजुर्गों का कहना है कि बहुदक विस्तार में अलग-अलग 12 शिवलिंग है। इनमें से कपिलेश्वर महादेव सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, जिसकी वजह है मंदिर में स्थापित विशेष शिवलिंग। ऐसा शिवलिंग पूरे देश में शायद कहीं भी नहीं मिलेगा। यह शिवलिंग पत्थर (Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham) के कमल पर स्थापित है। माना जाता है कि इस शिवलिंग की पूजा करने से सुख और वैभव मिलते हैं। गर्भ ग्रह में स्थापित शिवलिंग के साथ एक ही रेखा में तीन शिवलिंग स्थापित है। शिव भक्तों का मानना है के शिव जी के सानिध्य में आकर उनकी तमाम इच्छा पूर्ण होती है। क्रोध का नाश होता है और अंतर्मन शांत हो जाता है।
यहां आये हुए एक दर्शनार्थी विष्णु चुनारा ने बताया ''मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां आने से सुख, शांति और आनंद मिलता है। जो भी मनोकामना होती है वह पूर्ण होती है। जो मांगा जाए वो मिल जाता (Kapileshwar Mahadev Bahudak Dham) है। कई बार बिना मांगे भी बहुत कुछ मिल जाता है। ऐसा लगता है, जैसे हम स्वर्ग लोक में हैं। कोई भी दुःख आन पड़े, घर में अशांति का माहौल हो और आप यहां आकर मनोकामना मांगते हैं तो आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो ही जाती हैं। कोई भी दुख हो, क्रोध खुब आया हो और आप इस भूमि पर आते हैं, तो शांत विचार आने लगते हैं। यहां आने से मनुष्य का मन, आत्मा सब पवित्र हो जाता है। गलत विचारों का नाश होता है।''
यहां आकर भक्तों का मन भोलेनाथ के साथ जुड़ जाता है और सारे विचार त्याग कर भक्त शिव जी स्तुति करने लगते हैं।
जय शिव शंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि सुख-सार हरे।
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर, जय जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहरि, अमित अनंत अपार हरे ।।
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