Kaiserganj Loksabha Seat: बृज भूषण नहीं, बेटा करण भूषण लड़ेगा चुनाव, भाजपा ने साध लिया इससे महिला सुरक्षा का मुद्दा?
Kaiserganj Loksabha Seat: कैसरगंज, उत्तरप्रदेश। भाजपा लोकसभा चुनाव में लगातार महिला सुरक्षा के मुद्दे पर जनता को मोदी की गारंटी देने के दावे कर रही है। इसी गारंटी के चलते उत्तर प्रदेश की कैसरगंज सीट (Kaiserganj Loksabha Seat) पर बड़ा संशय बना हुआ था। अब भाजपा ने उम्मीदवार की घोषणा कर संशय के बादल तो हटा दिये परंतु अब इस सीट को लेकर राजनीति के नए कयास भी नज़र अंदाज़ नहीं किए जा सकते। बृजभूषण शरण सिंह को लेकर चलने वाली चर्चा ने विराम लिया परंतु भाजपा के विपक्षियों ने उनके पहलवान बेटे करण भूषण को टिकट देने पर भर सवाल उठाए हैं।
बृज भूषण का भाजपा ने तोड़ा विश्वास
22 अप्रैल को दिल्ली से बृज भूषण जब क़ैसरगंज (Kaiserganj Loksabha Seat) लौटे तब उनका बिलकुल ऐसा स्वागत किया गया जैसे वो चुनाव जीत कर लौटे हों। उनके बयानों में भी टिकट मिलने वाला आत्मविश्वास साफ देखा जा सकता था परंतु भाजपा पर ये दबाव था कि महिला पहलवानों के मामले में फसे हुए बृज भूषण शरण सिंह को टिकट देगी या नहीं। दिल्ली से लौटने के बाद बृज भूषण ने चुनावी प्रचार में अपना दम दिखाना शुरू किया। एक चुनावी सभा में बृज भूषण के बयान से ये तय माना जा रहा था कि दिल्ली में उनको टिकट देने की बात पर मुहर लग गयी है।
भाषणों से समझिए बृज भूषण के आत्मविश्वास की छवि
दिल्ली में आलाकमान से लंबी वार्ता के बाद जब बृज भूषण शरण सिंह (Kaiserganj Loksabha Seat) वापिस अपने क्षेत्र में लौटे तब चुनाव प्रचार करते हुए उन्होने एक सभा में मंच से कहा कि, "हम अपनी पूरी तैयारी किए हुए हैं, जल्दी ही इस बारात को क़ैसरगंज से ही दूल्हा मिलने वाला है।" इस बयान और उनकी खुशी देख कर यही कयास लगाए गए कि टिकट उनकी झोली में ही है। इसी बयान में ये भी कहा कि टिकट फ़ाइनल है, आप बस तैयारी पूरी रखो। इन बयानों के बाद टिकट बृज भूषण के हिस्से नहीं आना उनकी साख पर सवाल उठाते हैं। इतना ही नहीं महिला पहलवानों के मामले में उन पर अब और ज्यादा उँगलियाँ उठाना स्वाभाविक होता जा रहा है।
बृज भूषण शरण और संदेशखाली का क्या है नाता?
पूरे देश भर में भाजपा अपने चुनावी एजेंडों के बीच बार बार महिला सुरक्षा का दावा कर रही है। पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित संदेशखाली के मामले में भाजपा ने टीएमसी और ममता बनर्जी को जम कर घेरा। मोदी ने बंगाल की सभी सभाओं में संदेशखाली का जिक्र करते हुए कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के साथ टीएमसी ने वोटों को लेकर समझौता किया। टीएमसी और ममता बनर्जी के लिए संदेशखाली की महिलाओं (Kaiserganj Loksabha Seat) से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव और वोट हो गए थे। आरोपी को बचाने के लिए जो किया जा सकता था वो टीएमसी ने किया।" दूसरी तरफ काँग्रेस और गठबंधन के नेता बार बार महिला सुरक्षा वाले मुद्दे पर भाजपा और मोदी सरकार को महिला पहलवान के मुद्दे पर घेर रही है जहां बृज भूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने अस्मत को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं और मामला अभी भी कोर्ट में है।
भाजपा को ब्रिज भूषण से कैसा डर?
भारतीय जनता पार्टी की आलाकमान ये बात जानती है कि बृज भूषण शरण सिंह से सीधी टक्कर लेना भी चुनाव के समय में मुश्किलें खड़ी कर कर सकता है। खतरनाक इसलिए क्योंकि बृज भूषण शरण सिंह सपा से भाजपा में आए थे। उनकी नज़दीकियाँ हमेशा से मुलायम सिंह और अखिलेश यादव से रही है। ऐसे में अगर उनके ही उत्तराधिकारी को नहीं चुना जाता तो राजनीति के स्तर (Kaiserganj Loksabha Seat) पर मामला बिगड़ सकता था। दिल्ली में हुए पहलवानों के विरोध ने दिल्ली समेत हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बड़े हिस्से को प्रभावित किया। अगर टिकट बृज भूषण शरण सिंह को ही मिलती को हार - जीत से पहले ही विवाद खड़ा हो जाता। परंतु अगर बृज भूषण के बेटे करण को नहीं देकर किसी बाहरी को मिलती तो भाजपा को बृज भूषण का विरोध देखने और उनका पार्टी छोड़ने का निर्णय भी भुगतना पड़ सकता था।
बेटे को टिकट मिलने से बृज भूषण कितने खुश?
सोशल मीडिया पर हालिया तस्वीरें और वीडियो देखि जाए तो बृज भूषण शरण सिंह के बेटे को टिकट मिलने पर वो खुद कुछ खास खुश नज़र नहीं आ रहे हैं। टिकट मिलने वाली तारीख यानि 2 मई को जब बेटे करण भूषण के नाम पर भाजपा ने मुहर लगाई, उस दिन मीडिया से बातचीत से भी दूरी बनाए रखी। 3 मई को मीडिया से रुबरू होकर कहा कि वो खुश हैं और अब जनता के बीच जा कर देखेंगे (Kaiserganj Loksabha Seat) कि क्या होता है, पिछले 4-5 दिनों से जनता के बीच गए नहीं हैं।" परंतु इस मीडिया संवाद में भी बृज भूषण का हमेशा वाला रौब और तरीका नज़र नहीं आया। सोशल मीडिया पर चल रही कई वीडियो में ये दावा भी किया जा रहा है कि टिकट मिलने की खबर के बाद जब करण भूषण पिता के पैर छूने गए तो इसे भी बृज भूषण ने नज़र अंदाज़ कर दिया।
बृज भूषण के घर ही पहुंची टिकट
विपक्षी बार बार इस बात का मुद्दा उठा रहे हैं कि भाजपा ने बृज भूषण शरण सिंह (Kaiserganj Loksabha Seat) को टिकट नहीं देकर उनके बेटे करण भूषण शरण सिंह को टिकट दिया है। इससे भाजपा महिला सुरक्षा के मुद्दे पर बचना चाहती है, जबकि इस बात से क्या ही फर्क पड़ेगा, टिकट गई तो बृज भूषण शरण सिंह के ही आँगन में है। काँग्रेस के कई नेताओं ने इस बात से आपत्ति भी उठाई है। काँग्रेस इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने का काम कर रही है वहीं भाजपा इस बात को भुनाने की कोशिश में रहेगी कि महिला पहलवान के मुद्दे के चलते बृज भूषण शरण सिंह को टिकट नहीं दिया गया।
मैं 35 की उम्र में बना था सांसद, अब बेटे की बारी: बृज भूषण
मीडिया से वार्ता करते हुए बेटे को टिकट देने के सवाल पर बृज भूषण शरण (Kaiserganj Loksabha Seat) सिंह ने कहा कि, "पार्टी से ऊपर कुछ भी नहीं है। पार्टी के लिए निर्णय पर किसी भी तरह का सवाल नहीं उठता। पार्टी ने निर्णय लिया है तो सोचा समझ कर ही लिया होगा। मैं पार्टी के निर्णय का पालन भी करुणा। मैं 1989 से पार्टी के साथ जुड़ कर काम कर रहा हूँ। एक बार समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा था और क़ैसरगंज से जीता भी था। 20014 में फिर से भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा और जीता भी। पार्टी से ऊपर हम नहीं है, पार्टी हम सब से बड़ी होती है। पार्टी के निर्णय से हम और यहाँ की जनता भी खुश है। मैं 35 साल की उम्र में पहली बार सांसद बना था अब बेटा भी 35 की ही उम्र में सांसद बनेगा।
अब बृज भूषण के दोनों बेटे सक्रिय राजनीति में
बृज भूषण शरण सिंह के दो बेटे हैं। एक बेटा पहले से सक्रिय राजनीति में है, जिसका नाम है प्रतीक भूषण शरण सिंह। प्रतीक शरण गोंडा सदर से विधायक हैं और कई सालों से सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहे हैं। दूसरे बेटे हैं करण भूषण जिनको क़ैसरगंज (Kaiserganj Loksabha Seat) से अभी भाजपा ने टिकट दिया है। वैसे राजनीति का हिस्सा अप्रत्यक्ष रूप से करण भूषण भी रहे हैं, क्योंकि जब बृज भूषण सिंह अपने क्षेत्र में नहीं होते हैं तो करण ही जन संपर्क और जनता से संवाद कर जनता की समस्या सुलझाने का काम किया करते थे। बृज भूषण कहते भी हैं कि करण भूषण की कुंडली में राजनीति का योग लिखा हुआ था। इसलिए खुद चल कर टिकट घर आई है। बाप - बेटे दोनों ही 35 की उम्र में सांसद बनने वाले हैं। बृज भूषण भी पहली बार सांसद 35 की ही उम्र में बने थे और बेटे की जीत को लेकर निश्चिंत बृज भूषण भी यही कह रहे हैं कि करण भूषण भी 35 की ही उम्र में पहली बार सांसद बनेंगे।
बृज भूषण फिर से सपा का हाथ थामने वाले थे?
बृज भूषण शरण सिंह पहले भी एक बार समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव (Kaiserganj Loksabha Seat) लड़े और जीत भी चुके हैं। इस बार की रणनीति को देखते हुए ये कयास लगाए जा रहे थे कि सपा ने क़ैसरगंज लोकसभा सीट से इसलिए ही उम्मीदवार नहीं उतारा क्योंकि अगर भारतीय जनता पार्टी किसी भी स्थिति में बृज भूषण शरण सिंह को खफा करती है तो बृज भूषण सपा का हाथ थाम लेंगे। अखिलेश यादव और बृज भूषण लंबे अरसे से दोस्त हैं। ऐसी भी खबरें सुनने में आई थी कि बृज भूषण शरण सिंह और सपा के अखिलेश यादव की इस विषय पर मीटिंग्स भी हो चुकी है। परंतु ब्रिज भूषण पार्टी के निर्णय का इंतजार कर रहे थे।
ऐसे समझिए बृज भूषण और सपा - अखिलेश का नाता
वैसे तो सपा की टिकट पर एक बार सांसद रहे बृज भूषण का रिश्ता सपा के साथ है ही परंतु कुछ तस्वीरों और चर्चाओं से ये आसानी से जाना जा सकता है कि सिर्फ अखिलेश यादव ही नहीं, बृज भूषण शरण सिंह (Kaiserganj Loksabha Seat) का नाता मुलायम यादव से भी था। बृज भूषण और सपा के साथ का नाता पुराना है। भाजपा में आने से पहले सपा का हिस्सा रहे बृज भूषण और सपा के सर्वे सर्वा अखिलेश यादव अलग अलग विरोधी राजनीतिक दलों में होने के बावजूद कभी एक दूसरे के खिलाफ बोलते हुए नज़र नहीं आए। यहाँ तक की महिला पहलावनों के यौन शोषण के मामले में फसे बृज भूषण पर अखिलेश यादव को छोड़ कर बाकी सभी विपक्षियों ने टिप्पणी की। उसी बात को लेकर बृज भूषण शरण सिंह ने अखिलेश की तारीफ भी की और कहा कि, "मैंने उनके साथ काम किया है, वो सच्चाई जानते हैं कि मैं कैसा हूँ, मैं उनसे बड़ा हूँ और उन्हें बचपन से जानता हूँ। उत्तर प्रदेश में पहलवानों की स्थिति और मेरी व्यक्तिगत साख को अखिलेश समझते हैं इसके लिए मैं उनको धन्यवाद देता हूँ।"
क़ैसरगंज लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
उत्तर प्रदेश क़ैसरगंज लोकसभा सीट पर पिछले दो बार के परिणाम (Kaiserganj Loksabha Seat) देखे जाएँ तो यहाँ से लोकसभा चुनाव जीत कर बृज भूषण शरण सिंह ही भाजपा की तरफ से सदन का हिस्सा बन रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव और साल 2019 के लोकसभा चुनाव बृज भूषण शरण सिंह के ही पक्ष में ही रहा। इससे पहले 2009 में सपा की सीट पर भी बृज भूषण शरण सिंह ने ही इस सीट पर चुनाव जीता था। अब करण भूषण भाजपा से चुनावी मैदान में पहली बार टक्कर देने के लिए खड़े हैं।
करण भूषण की क्षेत्र में सक्रियता
करण भूषण शरण सिंह की सक्रियता क्षेत्र में राजनीति के परिपेक्ष से बहुत अधिक नहीं रही है। उनके सोशल मीडिया अकाउंट को खंगाला गया तो पता चला कि वो शूटर हैं। उनके अकाउंट पर उनकी कई यात्राओं (Kaiserganj Loksabha Seat) की भी तस्वीरें हैं। गोंडा के लोग बताते हैं कि वो पिता के नहीं होने पर जनता के बीच आकर उनकी समस्याएँ हल किया करते थे। 13 दिसंबर 1990 को जन्में करण भूषण डबल ट्रेप शूटिंग के राष्ट्रीय खिलाड़ी रह चुके हैं। शुरुआती पढ़ाई स्थानीय स्कूल और अपने पिता बृज भूषण शरण सिंह के ही कॉलेज नंदिनी से की। बृज भूषण शरण सिंह के लगभग 50 स्कूल और कॉलेज हैं। इसके बाद वो औस्ट्रेलिया जाकर बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी कर देश लौटे। कुश्ती का भी शौक रखने वाले करण स्थानीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी हैं।
2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम
2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम की बात की जाए तो बृज भूषण शरण सिंह के सामने क़ैसरगंज लोकसभा सीट (Kaiserganj Loksabha Seat) पर बसपा के चन्द्र देव राम यादव और काँग्रेस के विनय कुमार पांडे विन्नू चुनावी मैदान में खड़े थे। इस लोकसभा चुनाव में भी बृज भूषण शरण सिंह को 5 लाख 81 हज़ार 358 वोट मिले, जबकि बसपा के चन्द्र देव राम यादव को 3 लाख 19 हज़ार 757 वोट मिले। काँग्रेस इस दौड़ से बहुत दूर 37 हज़ार कुछ वोटों पर सिमट कर रह गयी। इस लोकसभा सीट के क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें आती है। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में 5 में से भाजपा ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी।
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