• ftr-facebook
  • ftr-instagram
  • ftr-instagram
search-icon-img

Same Sex Marriage Verdict: 9 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में होगी ऐतिहासिक सुनवाई, LGBTQIA+ समुदाय की उम्मीदें बढ़ीं

Same Sex Marriage Verdict: समान-लिंग विवाह मामले में समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की नई पांच-जजों की पीठ 9 जनवरी को विचार करेगी। यह LGBTQIA+ समुदाय और विवाह समानता की मांग करने वाले कानूनी अधिवक्ताओं के लिए...
featured-img

Same Sex Marriage Verdict: समान-लिंग विवाह मामले में समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की नई पांच-जजों की पीठ 9 जनवरी को विचार करेगी। यह LGBTQIA+ समुदाय और विवाह समानता की मांग करने वाले कानूनी अधिवक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के जुलाई 2024 में व्यक्तिगत कारणों से इस मामले से अलग होने के बाद पीठ का पुनर्गठन किया गया है। अब नई पीठ में न्यायमूर्ति भूषण आर गवई, सूर्यकांत, बीवी नागरत्ना, पीएस नरसिम्हा और दीपांकर दत्ता शामिल हैं। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ही ऐसे सदस्य हैं जो अक्टूबर 2023 के फैसले देने वाली मूल संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे, क्योंकि उस पीठ के अन्य सभी सदस्य सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

नई पीठ समीक्षा याचिकाओं पर "चेंबर प्रोसीडिंग्स" के तहत विचार करेगी। हालांकि, यदि पीठ को लगता है कि मामले की गंभीरता के कारण मौखिक सुनवाई जरूरी है, तो वह इसे खुली अदालत में भी सुन सकती है।

अक्टूबर 2023 का विवादास्पद फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर 2023 को 3-2 के बहुमत से समान-लिंग विवाहों या नागरिक संघों को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। बहुमत ने कहा था कि यह विषय संसद और राज्य विधानसभाओं के क्षेत्राधिकार में आता है। न्यायमूर्ति रवींद्र भट, हीमा कोहली और पीएस नरसिम्हा द्वारा लिखे गए बहुमत निर्णय में कहा गया था कि समान-लिंग विवाह का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित नहीं है।

दूसरी ओर, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने असहमति व्यक्त करते हुए LGBTQIA+ समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि समान-लिंग व्यक्तियों को विवाह और बच्चों को गोद लेने का अधिकार नहीं देना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

समीक्षा याचिकाओं के तर्क

समीक्षा याचिकाओं में अक्टूबर के फैसले को "अन्यायपूर्ण" और "संविधान के मूल्यों के खिलाफ" बताया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही LGBTQIA+ समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव को स्वीकार किया, लेकिन उन्हें ठोस राहत देने में विफल रही।

अमेरिका स्थित वकील उदित सूद, जो 52 मूल याचिकाकर्ताओं में से एक हैं, उन्होंने नवंबर 2023 में पहली समीक्षा याचिका दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया कि बहुमत के फैसले में नागरिक संघों और गोद लेने के अधिकार की रक्षा करने से इनकार करना LGBTQIA+ व्यक्तियों के साथ अन्याय है।

अन्य याचिकाकर्ता सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग ने तर्क दिया कि संवैधानिक अदालतें मौलिक अधिकारों के साथ कानूनों के सामंजस्य को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकती हैं और इसके लिए केवल विधायी कार्रवाई की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती।

याचिकाकर्ताओं ने विशेष विवाह अधिनियम की उपेक्षा पर भी सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि इस अधिनियम की व्याख्या इस तरह की जानी चाहिए थी कि यह गैर-हेतरोसेक्सुअल संघों को भी मान्यता प्रदान करे।

LGBTQIA+ अधिकारों की दिशा में अहम कदम

यह सुनवाई भारत में LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के भविष्य को आकार देने में निर्णायक हो सकती है। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि विवाह समानता से इनकार करना सुप्रीम कोर्ट के पूर्व ऐतिहासिक निर्णयों, जैसे कि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) और NALSA बनाम भारत संघ (2014) के खिलाफ है।

यह मामला व्यक्तिगत अधिकारों और विधायी अधिकारों के संतुलन को लेकर भारत के संवैधानिक न्यायशास्त्र पर भी गहरा प्रभाव डालेगा। नई पीठ के समक्ष चुनौती यह होगी कि वह इन जटिल मुद्दों को कैसे सुलझाती है और अक्टूबर 2023 के निर्णय में न्यायिक संकोच की आलोचनाओं का जवाब देती है।

यह भी पढ़ें: Delhi Election 2025: दिल्ली में आचार संहिता के तहत क्या बदल गया है? जानें महत्वपूर्ण बातें

.

tlbr_img1 होम tlbr_img2 शॉर्ट्स tlbr_img3 वेब स्टोरीज़ tlbr_img4 वीडियो