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राजस्थान का अनोखा समाज! जहां दहेज नहीं, दुल्हन को मिलता है 'टैक्स'....हैरान कर देगी परंपरा!

लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसा समाज भी है, जहां न सिर्फ दहेज का कोई अस्तित्व नहीं है, बल्कि इसके उलट शादी में दूल्हे को ही ‘दापा’ के रूप में दुल्हन पक्ष को धन देना पड़ता है?
11:37 AM Feb 27, 2025 IST | Rajesh Singhal

Dapa pratha: भारत में दहेज प्रथा को लेकर कानून चाहे जितने सख्त हों, लेकिन हर साल हजारों मामले थानों में दर्ज होते हैं। दहेज को लेकर होने वाले अपराधों की खबरें आए दिन सुर्खियां बटोरती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसा समाज भी है, जहां न सिर्फ दहेज का कोई अस्तित्व नहीं है, बल्कि इसके उलट शादी में दूल्हे को ही ‘दापा’ के रूप में दुल्हन पक्ष को धन देना पड़ता है? यह परंपरा आदिवासी समाज में सदियों से चली आ रही है, (Dapa pratha)और इसका उल्लेख कुछ दिन पहले बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने भी सोशल मीडिया पर किया था। आखिर क्या है ‘दापा प्रथा’? क्यों आदिवासी समाज में इसका इतना महत्व है? आइए जानते हैं इस अनोखी परंपरा के सामाजिक और सांस्कृतिक मायने।

दूल्हा देता है दुल्हन को टैक्स

राजस्थान के आदिवासी समुदायों में विवाह से जुड़ी एक अनूठी परंपरा है, जिसे दापा प्रथा कहा जाता है। यह प्रथा दहेज प्रथा के बिल्कुल विपरीत है और आदिवासी समाज में लैंगिक समानता व सामुदायिक एकजुटता को दर्शाती है। इस परंपरा के तहत दूल्हा पक्ष को दुल्हन पक्ष को विभिन्न प्रकार के शुल्क (टैक्स) देने पड़ते हैं, जो समुदाय के विभिन्न सदस्यों के बीच वितरित किए जाते हैं। यह अनूठी प्रथा सामाजिक संतुलन को बनाए रखने और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

दापा प्रथा के अंतर्गत दिए जाने वाले शुल्क

दापा प्रथा में दूल्हे को अलग-अलग सामाजिक इकाइयों को शुल्क देना पड़ता है। इनमें शामिल हैं:

गांव में प्रवेश शुल्क – जब दूल्हा पहली बार दुल्हन के गांव में प्रवेश करता है, तो उसे यह शुल्क देना पड़ता है।

फला (कबीला) शुल्क – यह शुल्क समुदाय की एकता और सहयोग बनाए रखने के लिए दिया जाता है।

परिवार शुल्क – दुल्हन के परिवार को दिया जाने वाला पारंपरिक धन।

बुआ व मामा शुल्क – दुल्हन के रिश्तेदारों, विशेष रूप से बुआ और मामा को सम्मान के रूप में यह शुल्क दिया जाता है।

गमेती शुल्क – समुदाय के बुजुर्गों और मुखियाओं को दिया जाने वाला पारंपरिक कर।

सामुदायिक सहयोग....लैंगिक समानता का प्रतीक

आदिवासी समाज में दापा प्रथा दहेज के उलट एक सकारात्मक परंपरा के रूप में देखी जाती है। इस प्रथा का उद्देश्य लैंगिक समानता को बनाए रखना और सामुदायिक सहयोग को बढ़ावा देना है। जहां दहेज प्रथा में दुल्हन के परिवार को आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है, वहीं दापा प्रथा में दूल्हा पक्ष की जिम्मेदारी होती है कि वह दुल्हन के परिवार को सम्मान के रूप में शुल्क दे। इससे महिलाओं की सामाजिक स्थिति मजबूत होती है और उनके परिवारों को आर्थिक सहयोग मिलता है।

आधुनिकता...दापा प्रथा का संरक्षण

आधुनिकता और बाहरी प्रभावों के कारण कई पारंपरिक प्रथाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं। दापा प्रथा भी इनमें से एक है। हालांकि, यह प्रथा सामाजिक संतुलन बनाए रखने और वैवाहिक संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में इस प्रथा का संरक्षण और जागरूकता आवश्यक है, ताकि आदिवासी समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रख सके और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली इस अनूठी परंपरा को संरक्षित किया जा सके।

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