10 साल की लक्ष्या का नशे के खिलाफ अभियान, 50 हजार लोगों को दिलाई शपथ...नाटक से करती है जागरूक
Sriganganagar Lakshya Jyani: नन्हें हाथ, लेकिन बड़ा हौसला… मासूम उम्र, लेकिन मजबूत इरादे! श्रीगंगानगर की 10 साल की लक्ष्या ने नशे के खिलाफ जो मुहिम छेड़ी है, वह किसी क्रांति से कम नहीं। जब बच्चे खेल-कूद में व्यस्त होते हैं, तब लक्ष्या ने समाज को जागरूक करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
उन्होंने 50,000 से अधिक लोगों को नशे से दूर रहने की शपथ दिलाई और 300 से ज्यादा नाटकों के माध्यम से लोगों को यह अहसास कराया कि नशा सिर्फ शरीर को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और समाज को बर्बाद कर देता है। इस नेक पहल में उनके पिता विक्रम ज्याणी, मां नीलम और साथी कलाकार सहीराम भी कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं।
लक्ष्या की इस निडरता और समर्पण को देखकर जिला प्रशासन ने उन्हें ब्रांड एंबेसडर बनाया, और उनकी इस अनोखी मुहिम को राजस्थान के राज्यपाल ने सम्मानित भी किया। इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा बदलाव लाने का जुनून… यह सिर्फ एक बच्ची का सपना नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक नई उम्मीद है। लक्ष्या की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। समाज में बदलाव लाने के लिए बस एक सच्चे दिल की जरूरत होती है – और लक्ष्या ने यह साबित कर दिखाया है!
नशे से रिश्तेदार की मौत...
कुछ समय पहले हमारे परिवार के एक रिश्तेदार की मौत हो गई थी। वह नशे के ओवरडोज के कारण हमारे बीच से चला गया था। मैं जब घर आई, तो देखा कि आंगन में कोई सो रहा था और पास में पूरा परिवार रो रहा था। उनकी बेटी, जो लगभग मेरी उम्र की थी, अपने पापा को पुकारते हुए रो रही थी। उसकी दादी और दादा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसका दर्द देखकर मुझे बहुत डर लगने लगा।
घर आते वक्त मैंने पापा से पूछा, "क्या हुआ था?" पापा ने बताया कि उस लड़की के पिता की नशे के ओवरडोज से मौत हो गई थी। मैं नशे के बारे में कुछ नहीं जानती थी, लेकिन पापा ने मुझे इसके बारे में सब कुछ बताया। मुझे यह सुनकर बहुत डर लगा। मेरी मां ने कहा, "जब लोग नशे के बारे में जागरूक होंगे और इसके बुरे परिणाम जानेंगे, तभी हम इसे रोक सकते हैं।"
नशे के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत
उस दिन मैंने ठान लिया कि मुझे नशे के खिलाफ कुछ करना होगा। पापा नाटकों का मंचन करते थे, तो मैंने जिद की और उनके साथ जाने लगी। फिर मैंने सोचा, नशे के खिलाफ लड़ाई शुरू करने का सही तरीका यही हो सकता है। पापा के साथ मिलकर नशे के खिलाफ नाटक ‘दीपक देता अंधेरा’ बनाया। इसमें मैंने एक अभागी बेटी का किरदार निभाया, जिसे उसके ही पिता ने नशे के कारण मार दिया और उसे नशे के लिए बेच दिया। इस नाटक का उद्देश्य एक ही था – नशे से बचना।
हमारे नाटक का संदेश बहुत गहरा था। मैं चाहती थी कि लोग इसे समझें और नशे से बचने का संकल्प लें। नाटक के माध्यम से हम इस संदेश को समाज में फैलाना चाहते थे। नाटक में मेरे साथ पापा भी थे, और हम दोनों ने मिलकर नशे के खिलाफ जन जागरूकता फैलाने की पूरी कोशिश की।
नशे के खिलाफ लक्ष्या का अभियान
श्रीगंगानगर के नाट्य निर्देशक विक्रम ज्याणी ने कहा कि हमारा सबसे बड़ा उद्देश्य था कि युवा नशे से मुक्त हो जाएं और नई पीढ़ी नशे से हमेशा दूर रहे। अब तक लक्ष्या ने 300 से ज्यादा नाटकों का मंचन किया है, और उनकी इस संघर्ष यात्रा को राजस्थान के राज्यपाल से भी सम्मानित किया गया है। यह हमारे जीवन का सबसे बड़ा अभियान है, और हम इसे पूरी मेहनत से जारी रखेंगे।
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