1911 का किस्सा, अजमेर दरगाह में मंदिर का जिक्र...कौन है वो लेखक जिनकी किताब पर हुआ ये बड़ा दावा
Ajmer Sharif Dargah: राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित विश्वप्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक बार फिर सुर्खियों में है जहां दरगाह के अंदर संकट मोचन महादेव मंदिर होने के लंबे समय से किए जा रहे दावे पर एख नया लीगल मोड़ मिला है. बीते बुधवार को अजमेर के सिविल कोर्ट में हुई सुनवाई में दरगाह में मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को स्वीकार कर इससे सुनने योग्य माना है जिसके बाद अब कोर्ट 20 दिसंबर को अगली सुनवाई करेगा. हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता लगातार ये दावा कर रहे हैं.
बुधवार को अजमेर सिविल कोर्ट ने दरगाह में मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका पर सुनावाई करते हुए अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस देकर अपना पक्ष रखने को कहा है. दिल्ली में रहने वाले हिंदू राष्ट्र सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अपने दावे में कई आधार कोर्ट में पेश किए हैं जिनमें एक किताब का हवाला, 2 साल की रिसर्च औऱ दरगाह की डिजाइन और नक्काशी का भी जिक्र है.
क्या आप जानते हैं कि वो कौनसी किताब है जिसको लेकर इतना बड़ा दावा किया गया है और कौन है वो लेखक जिनकी किताब में अजमेर दरगाह में हिंदू मंदिर होने का जिक्र किया गया है. आइए आपको बताते हैं.
1911 में आई एक किताब पर टिका मामला!
दरअसल अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर को लेकर हिंदू सेना के दावे के पीछे 1911 में प्रकाशित एक किताब है जो हरबिलास सारदा ने 1911 में लिखी थी. इस किताब का नाम था - अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव. इस किताब को मामले में अदालत में सबूत के तौर पर भी पेश भी किया गया है. याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता ने कहा कि उनकी 2 साल की रिसर्च और रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की किताब में दिए गए तथ्यों के आधार पर उन्होंने ये दावा किया है.
बता दें कि इस किताब में दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का भी एक चैप्टर है जहां पेज संख्या-97 के पहले पैराग्राफ में दरगाह में महादेव मंदिर होने का ज़िक्र किया गया है. किताब में लिखा है तहखाने के अंदर एक मंदिर में महादेव की छवि है, जिस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार द्वारा चंदन रखा जाता था, जिसे अभी भी दरगाह द्वारा घड़ियाली के रूप में रखा जाता है. इसके अलावा हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता का कहना है कि अजमेर के कई पुराने लोग दबी जुबान में कहते आए हैं कि दरगाह में पहले संकट मोचक महादेव का मंदिर हुआ करता था.
कौन थे हरबिलास सारदा?
बता दें कि हरबिलास सारदा का जन्म 3 जून 1867 को अजमेर में एक माहेश्वरी परिवार में हुआ था जहां उनके पिता श्रीयुत हर नारायण शारदा (माहेश्वरी) एक वेदांती थे जिन्होंने अजमेर के गवर्नमेंट कॉलेज में लाइब्रेरियन के रूप में काम किया. शारदा ने 1883 में अपनी मैट्रिक परीक्षा पास की और बाद में आगरा कॉलेज (तब कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध) में पढ़ाई की. वहीं इसके बाद 1888 में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की. उन्होंने 1889 में गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया और वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन अपने पिता के खराब स्वास्थ्य के कारण वह नहीं जा पाए.
कई सरकारी पदों पर रहे सारदा
वहीं 1892 में सारदा ने अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में काम करना शुरू किया. 1894 में वह अजमेर के नगर आयुक्त बने और अजमेर विनियमन पुस्तक, प्रांत के कानूनों और नियमों के संकलन को संशोधित करने पर काम किया. उन्होंने इसके बाद के कुछ सालों में अतिरिक्त सहायक आयुक्त, उप-न्यायाधीश प्रथम श्रेणी और न्यायाधीश सहित विभिन्न भूमिकाओं में काम किया.
वहीं उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अजमेर-मेरवाड़ा प्रचार बोर्ड के मानद सचिव के रूप में भी काम किया. 1923 में उन्हें अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बनाया गया जहां दिसंबर 1923 में वह सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए. इसके बाद जनवरी 1924 में सारदा को केंद्रीय विधान सभा का सदस्य चुना गया जब पहली बार अजमेर-मेरवाड़ा को विधानसभा में सीट दी गई. उन्हें 1926 और 1930 में फिर से विधानसभा के लिए निर्वाचित किया गया था. इसके बाद वह विधानसभा के अध्यक्षों में से एक चुने गए थे.
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