Udaipur: आदमखोर पैंथर की तलाश में रातभर डटे रहे 150 कर्मचारी...पिंजरों में बैठकर किया इंतजार, नहीं लगा हाथ
Panther Search Continues Gogunda: सतीश शर्मा. उदयपुर में आदमखोर पैंथर की दहशत 13वें दिन भी बरकरार है। वन विभाग आदमखोर पैंथर को देखते ही गोली मारने का आदेश दे चुका है। इसके बाद वन विभाग के शूटर्स पूरी रात पिंजरों में बैठकर आदमखोर पैंथर के आने का इंतजार करते रहे। मगर पैंथर नहीं आया। ड्रोन कैमरों से भी पैंथर बच निकला। ऐसे में गोगुंदा में आदमखोर पैंथर की दहशत अभी भी बरकरार है(Panther Search Continues Gogunda)। 13 दिन में 8 लोगों की जान ले चुके इस पैंथर को अभी तक नहीं पकड़ा जा सका है।
पैंथर की तलाश में 150वनकर्मी, पिंजरों में गुजारी रात
उदयपुर के गोगुंदा में आदमखोर पैंथर की वजह से ग्रामीण दहशत में हैं। यह पैंथर पिछले 13 दिनों में गोगुंदा और पास के गांव के 8 लोगों को अपना शिकार बना चुका है। जिससे ग्रामीण भयभीत हैं। पैंथर के लगातार इंसानों को शिकार बनाने के बाद मंगलवार को वन विभाग की ओर से आदमखोर पैंथर को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए। इसके बाद उदयपुर, रणथम्भौर सहित कई जिलों की वन विभाग की टीमों के 150 कर्मचारी पैंथर की तलाश में जुटे रहे। कुछ शूटर्स को पिंजरों में बिठाया गया, जिससे पैंथर के आते ही उसे शूट कर सकें। मगर पैंथर हाथ नहीं लगा।
वन विभाग ने बताया पैंथर के शिकार का पैटर्न !
वन विभाग की टीमों के साथ सेना के जवान भी आदमखोर पैंथर की तलाश में जुटे हुए हैं। ड्रोन की मदद से भी पैंथर का सुराग लगाने की कोशिश की जा रही है। ग्रामीण भी ढोल बजाकर जंगल में छिपे पैंथर को बाहर निकालने की कवायद कर रहे हैं। मगर तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक आदमखोर पैंथर वन विभाग की गिरफ्त से बाहर ही है। जिससे ग्रामीण भयभीत हैं। वन विभाग का कहना है कि पैंथर को पकड़ने के लिए टीम लगी हुई हैं।वन विभाग के मुताबिक बिछीवाड़ा में ही दो जगह पैंथर को पकड़ने के लिए 3-3 पिंजरे और 6- 6 कैमरे लगाए हैं। लेपर्ड अकेले लोगों पर हमला कर रहा है। हमला करने के बाद करीब 3 किलोमीटर आगे बढ़ जाता है, फिर दूसरा शिकार करता है।
आखिर क्यों इंसानी बस्ती में घुसा पैंथर ?
उदयपुर CCF सुनील चितरी के मुताबिक उदयपुर जिले के फलासियां, झाड़ोल और गोगुंदा रेंज का जंगल आपस में पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। यह लेपर्ड के लिए एक कॉरिडोर की तरह काम करता है। बारिश के समय पैंथर झाड़ियों और नदी-नालों में सही से नहीं चल पाता। इस वजह से पहाड़ी एरिया में रहना पसंद करता है। माना जा रहा है कि यह लेपर्ड पहाड़ी रास्तों से झाड़ोल से विजय बावड़ी तक पहुंच गया। सूत्रों के अनुसार इन इलाकों में अनुमान 60 से 70 लेपर्ड विचरण करते है।
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